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19. सतलुज के पार दूसरा आक्रमण

(सन् 1807) इस बार पटियाला के राजा साहिब सिंघ और उसकी धर्मपत्नी आस कौर में झगड़ा होने के कारण रानी ने रणजीत सिंघ को यह लालच देकर निमँत्रण दिया कि अगर वह रानी के पुत्र कर्म सिंघ को जागीर दिलवाएगा जो कि साहिब सिंघ उसे देने के लिए तैयार नही था, तो रानी रणजीत सिंघ को बहुमूल्य मोतियों की माला और पटियाला की प्रसिद्ध ‘कड़ाखां’ वाली तोप प्रदान करेगी। रणजीत सिंघ के लिए हस्तक्षेप का यह बहुत शुभ अवसर था। वह अपने प्रसिद्ध जरनैल मोहकमचन्द और सरदार फतेह सिंघ अहलूवालिया के साथ काफी सेना लेकर पटियाला पहुँचा। बगैर किसी विरोध के राजा ने रानी आस कौर के पुत्र को 50 हजार की जागीर देनी मान ली और दोनों में सुलह सफाई हो गई। तब रणजीत सिंघ अपनी सेवाओं का मूल्य लेकर लाहौर लौटने की अपेक्षा मालवा में अपने राज्य का और विस्तार करने में लग गया। उसका पटियाला जाने का उद्देश्य भी यही था। उसने अम्बाला पहुँचकर वहाँ के राजा से नजराना कबूल किया, नालागढ़ पर कब्जा कर लिया और कैथल के भाई लाल सिंघ, कलासिया क्षेत्र के जोध सिंघ और दूसरे सरदारों के क्षेत्र से भी नजराने कबूल किए। लौटते समय उसने वधनी, जीरा और कोटकपूरा पर भी अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार रणजीत सिंघ के इस आक्रमण पर मालवा क्षेत्र पर बहुत भारी प्रभाव पड़ा। मालवा के सरदारों में आतँक छा गया और उन सबको ऐसा अनुभव हुआ कि रणजीत सिंघ उनके राज्यों को हड़प लेगा। इसलिए सिक्ख सरदारों का एक शिष्ट मण्डल अँग्रेज के दिल्ली स्थित रेजीडेन्ट ‘सीटन’ साहब से मिला और उनसे सहायता की प्रार्थना की परन्तु अँग्रेजों का उस समय इस प्रान्त में कोई राजनीतिक उद्देश्य नही था और वह कोई हस्तक्षेप उचित नहीं समझते थे। सीटन ने सरदारों को टालमटोल जवाब देकर टाल दिया। अँग्रेजों के इस व्यवहार से असन्तुष्ट होकर मालवा के सरदारों ने रणजीत सिंघ को अपना स्वामी समझना आरम्भ कर दिया और पटियाला के राजा ने तो रणजीत सिंघ से मित्रता स्थापित करने के लिए उसके साथ अपनी पगड़ी भी बदली। मालवा के क्षेत्र में अपनी सफलता को स्थायी बनाने के लिए रणजीत सिंघ ने सतलुज के पश्चिम की तरफ का क्षेत्र अपने अधीन कर लिया। यह क्षेत्र राहों (राहोन) के आसपास था और डल्लेवाली मिसल के अधीन था। उस समय उस पर तारा सिंघ घेबा राज्य करता था। उसकी मृत्यु के पश्चात् रणजीत सिंघ ने राहों (राहोन) नगर पर आक्रमण कर दिया। तारा सिंघ की विधवा ने उसका विरोध किया परन्तु रणजीत सिंघ के मुकाबले में न ठहर सकी। राहों का क्षेत्र कुछ देर बाद रणजीत सिंघ के अधीन हो गया और वहाँ से उसे काफी धन सम्पति प्राप्त हुई। राहों पर आक्रमण रणजीत सिंघ की गूढ नीति का एक उदाहरण माना जाता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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