18. रणजीत सिंघ का सतलुज नदी पार के
क्षेत्रों पर आक्रमण
अपनी पहली सफलता से प्रोत्साहित होकर रणजीत सिंघ ने सतलुज नदी के पार के सिक्ख
राजाओं को अपने अधीन करने के लिए कारवाई आरम्भ की। इस काम के लिए उसने नीति का सहारा
लिया। उसकी अभिलाषा सारे सिख पँथ को अर्थात सब सिक्ख सरदारों को अपने अधीन करके
समूचे पँथ का नेता बनने की थी जिससे कि श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी की भविष्यवाणीः
राज करेगा खालसा, आकी रहे न कोय, को पूरा कर सके। इस कार्य की सफलता के लिए उसने
मालवा के इलाके में हस्तक्षेप करने का मौका तलाश किया। उस समय मालवा का अधिकाँश भाग
बालक फूल के वँश के राजाओं के अधीन था जिसे श्री गुरू हरिराय जी का वरदान प्राप्त
था। इन राजाओं के केन्द्र पटियाला, नाभा और जीन्द थे। पटियाला ने एक गाँव पर जो कि
नाभा का था अधिकार कर लिया। इस पर नाभा नरेश और जीन्द के राजा भाग सिंघ ने जो कि
महाराजा रणजीत सिंघ का रिश्तेदार था ने रणजीत सिंघ से इस झगड़े के समाधान के लिए
सहायता माँगी। रणजीत सिंघ इस काम के लिए पहले ही उत्सुक था। उसने फतेह सिंघ
अहलुवालिया और लाडवा के राजा के साथ 20 हजार सैनिक भेजकर दोलादी पर कब्जा कर लिया
और पटियाला के राजा साहिब सिंघ से इसके बदले बहुत बड़ा नजराना प्राप्त किया। इसके
अलावा नाभा से भी अपनी सेनाओं के लिए उसने काफी रूपया प्राप्त किया। मालवा से लौटते
हुए रणजीत सिंघ ने लुधियाना, दाखा, रायकोट, जगरावां और गँघराण के स्थानों पर कब्जा
करके उसको अपने साथियों और सहायको में बाँट दिया। यह उसकी एक चाल थी ताकि उन लोगों
को, जिनको ये स्थान प्राप्त हुए हैं, उन्हें हमेशा के लिए अपना समर्थक बनाया जा सके।