15. जसवन्तराव होलकर का पँजाब में
प्रवेश
सन् 1803-04 में मराठों की तीसरी लड़ाई अँग्रेजों के साथ हुई। इस लड़ाई में अँग्रेजों
ने जसवन्तराव होलकर और अमीर खान पण्डारी को हराया। इस पर जसवन्तराव होल्कर भागता
हुआ पँजाब की ओर बढ़ा ताकि वह महाराजा रणजीत सिंघ से सहायता और रक्षा प्राप्त कर सके।
उस समय जसवन्तराव का पीछा अँग्रेजी फौज का जनरल ‘लेक’ अपने नेतृत्व में कर रहा था।
होल्कर के पास इस समय बारह हजार घुड़सवार, तीन हजार तोपखाने के सिपाही और तीस तोपें
थी। रणजीत सिंघ उस समय (मई 1805 ई0) मुल्तान को जीतने के लिए उस तरफ गया हुआ था, तभी
उसे होल्कर के पँजाब में प्रवेश होने का समाचार मिला। वह उसी समय मुल्तान के नवाब
मुजफ्रफर खान से जल्दी में शर्ते रखकर अमृतसर की तरफ रवाना हुआ ताकि सरबत खालसा के
सामान्य अधिवेशन में सम्मिलित हो सके, जो कि केवल इसी निर्णय के लिए बुलाया गया था
कि रणजीत सिंघ को होल्कर के प्रति किस प्रकार की नीति अपनानी चाहिए। दूसरी तरफ जनरल
लेक ने भी रणजीत सिंघ से क्रियात्मक रूप में सहायता माँगी हुई थी परन्तु रणजीत सिंघ
ने कोई उत्तर न देकर चुप्पी साध ली। सरबत खालसा सम्मेलन में समस्त सरदार उपस्थित ही
नहीं हुए उन्होंने इसे ढोंग बताया और बहिष्कार किया। जो मित्र उसमें पधारे जैसे
फतेह सिंघ आहलुवालिया और महाराजा जींद भाग सिंघ ने अंग्रेजों के विरूद्ध होल्कर को
किसी प्रकार की सहायता न देने का परामर्श दिया। अतः रणजीत सिंघ ने ऐसा ही किया। जब
होल्कर को रणजीत सिंघ से निराशा मिली तो उसने जनरल लेक से ही सन्धि करने में अपनी
भलाई समझी। क्योंकि कलकत्ता में पुराना गवर्नर जनरल बदल चुका था, इसलिए जनरल लेक ने
जो समझौता 24 दिसम्बर 1805 के दिन अपने और जसवन्तराव होल्कर के बीच ब्यास नदी के
रायपुर घाट पर किया, उसमें होल्कर के सामने बहुत आसान शर्तें रखीं। इस सन्धि पत्र
के अनुसार होल्कर को अपने बहुत से प्रदेश वापिस मिल गए और वह चुपके से मध्य भारत की
ओर चला गया। जसवन्तराव होल्कर के वापस चले जाने पर जनरल लेक ने पँजाब में रणजीत
सिंघ की बढ़ती हुई शक्ति के महत्व को अच्छी तरह समझा और दोनों शक्तियों के बीच एक
मित्रता का सन्धि पत्र पर हस्ताक्षर होने की सम्भावना पर विचार किया।