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14. श्री अमृतसर साहिब जी पर अधिकार

सन् 1805 अमृतसर पर भँगी मिस्ल का अधिकार था। गुलाब सिंघ भँगी की मृत्यु के पश्चात् उसके छोटी आयु के बेटे गुरदित्ता सिंघ के अधीन समझा जाता था। परन्तु उसका प्रबन्ध माता सोखां चलाती थी। रणजीत सिंघ ने उसके कुछ कर्मचारियों की आपसी फूट से लाभ उठाकर श्री अमृतसर साहिब जी पर अधिकार करने की योजना बनाई। इस पर माई सोखां ने अपने पुत्र सहित किले में शरण ली और युद्ध के लिए तैयार हो गई और पँजतीर्थो बाग के निकट लाहौरी गेट की सुरक्षा के लिए अपनी सेना तैनात कर दी। तब रणजीत सिंघ ने अमृतसर में लोहगढ़ की तरफ से जो कि सरदार फतेह सिंघ अहलुवालिया के नियन्त्रण में था, अपनी सेना को प्रवेश करवाया और उसने फतेह सिंघ को आदेश दिया कि वह भँगियों के किले को घेर ले। भँगियों के प्रसिद्ध अधिकारी कमालुद्दीन ने किले के पास की एक रक्षा चौकी रणजीत सिंघ को दे दी जिसके कारण माई सोखां को किला छोड़ना पडा। रणजीत सिंघ ने जोध सिंघ रामगढिये के द्वारा भाई सोखां को प्रेरित किया कि वह जागीर प्राप्त करके अमृतसर छोड़ दे। माई सोखां ने ओर कोई चारा न देखकर यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इस प्रकार रणजीत सिंघ के पास अमृतसर का किला तथा नगर कब्जे में आ गए। इस विजय से रणजीत सिंघ को अब्दाली वाली तोप भी प्राप्त हो गई जिसको प्राप्त करने के लिए युद्ध छेड़ा गया था। इसके साथ ही श्री अमृतसर जी जैसा महत्वपूर्ण नगर जो कि सिक्खों का केन्द्रीय स्थान था तथा एक बहुत बड़ा व्यापारिक केन्द्र के रूप में उबर रहा था नियन्त्रण में आ गया। सबसे बड़ी बात इस विजय से रणजीत सिंघ को प्रसिद्ध निहंग अकाली फूला सिंघ का समर्थन भी प्राप्त हो गया। इस विजय को रणजीत सिंघ ने बहुत हर्षोल्लास से मनाया और सभी समर्थको में पुरस्कार बाँटे और बहुत बड़ी धनराशि दान में बाँटी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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