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13. अकालगढ़ और गुजरात की विजय

रणजीत सिंघ ने बड़े-बड़े सरदारों को अभी छोड़ दिया और छोटे सरदारों को पहले काबू करने का प्रयत्न किया। उनका प्रदेश विजय करने में उसने शक्ति और जोर जबरदस्ती से काम लिया। साधारण से झगड़े के बाद उनके प्रदेशों पर कब्जा कर लिया। भसीन की विजय के ठीक बाद जो मिस्लदार उसकी शक्ति का शिकार बने, उनमें से मुख्य ये थे:  गुजरात का भँगी सरदार साहिब सिंघ और अकलगढ़ का दूलसिंघ। साहिब सिंघ भँगी पर यह अभियोग था कि वह सन् 1800 ई. में भसीन के युद्ध में रणजीत सिंघ के मुकाबले में आया था, इसलिए उसके प्रदेश पर आक्रमण कर दिया। अकालगढ़ का दूलसिंघ, जो किसी समय रणजीत सिंघ के पिता सरदार महान सिंघ का दाँया हाथ था, साहब सिंघ की सहायता को आया परन्तु रणजीत सिंघ ने दोनों को पराजित कर दिया। इस प्रकार दूल सिंघ को बन्दी बना लिया गया किन्तु उसे बाद में छोड़ दिया गया। इसके बाद रणजीत सिंघ ने अकालगढ़ पर आक्रमण करके उस पर अधिकार कर लिया और दूलसिंघ की पत्नी के लिए दो गाँव जागीर के रूप में दे दिए । साहिब सिंघ भँगी ने भागने में ही अपनी खैर जानी और बहुत लम्बे समय इधर-उधर भटकता रहा। सन् 1809 में फकीर अजीजउद्दीन ने साहिब सिंघ भँगी को पूरी तरह पराजित किया और गुजरात के समस्त क्षेत्र को जीतकर रणजीत सिंघ के राज्य में मिला दिया। फकीर अजीजउद्दीन के छोटे भाई नूरूद्दीन को रणजीत सिंघ ने अपनी तरफ से गुजरात का गवर्नर नियुक्त कर दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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