11. परिचय अकाली फूला सिंघ जी
बाँगर क्षेत्र के गाँव शीहाँ के एक साधारण गुरसिख परिवार में भाई ईशर सिंघ के गृह
में सन् 1761 ई. में बालक फूला सिंघ का जन्म हुआ । आपके पिता सन् 1762 ई. में
अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण में जिसे सिक्ख जगत में बड़े घल्लूघारे के नाम से याद किया
जाता है, में शहीदी प्राप्त कर गए। आपको बाबा नारायण सिंघ जी ने अपनी छत्रछाया में
ले लिया जो उन दिनों शहीद मिसल के साथ सम्बन्धित थे। अकाली फूला सिंघ जी ने दस वर्ष
की आयु में ही नितनेम, अकाल उस्तति, 33 सवैये तथा अन्य बहुत सी वाणियाँ कण्ठ कर
लीं। गुरूबाणी से प्यार इतना था कि खेलने कूदने की अलबेली अवस्था में भी हमेशा
गुरूबाणी ही पढ़ते रहते। धार्मिक विद्या में अच्छी तरह निपुण होने के पश्चात
प्रत्येक गुरसिक्ख बालक के लिए शस्त्र विद्या अनिवार्य थी। अतः अकाली जी को भी
शस्त्र विद्या का प्रशिक्षण प्रारम्भ करवाया गया। थोडे ही समय में आप तलवारबाजी तथा
धनुष वाण चलाने में निपुण हो गए। इस प्रकार आप जल्दी ही घुड़सवारी तथा अन्य सामरिक
गुणों में माहिर हो गए। आप प्रशिक्षण पूरा करने पर बाबा नारायण सिंघ जी के जत्थे
में एक सिपाही के रूप में सम्मिलित हो गए और अकालियों वाली सैनिक वर्दी धारण कर ली।
आप जत्थे के साथ श्री आनन्दपुर साहिब जी आ गए और वहाँ पर सारा समय गुरूद्वारों की
सेवा सम्भाल में व्यतीत करने लगे । ज्यों-ज्यों आपकी निष्काम सेवा शक्ति की ख्याती
बढ़ती गई आपको समस्त जत्थे में मान-सम्मान मिलने लगा। एक दिन ऐसा भी आया जब आप बाबा
नारायण सिंघ जी के पश्चात् उनके जत्थे के मुख्य सेवादार के रूप में विख्यात हो गए।