10. फतेह सिंघ अहलुवालिया से मित्रता
कपूरथला के फतेह सिंघ अहलुवालियां को रणजीत सिंघ ने बडी चतुराई से अपना मित्र बना
लिया। सन् 1802 में वह उसको मिलने के लिये फतेहाबाद गया। अहलुवालिया सरदार उस समय
वहाँ नही था लेकिन उसकी माता ने रणजीत सिंघ को बुलवा भेजा। इसके परिणास्वरूप दोनों
ने एक दूसरे के साथ मित्रता रखने का वचन दिया और एक दूसरे से पगड़ी बदली अर्थात वे
अनन्य मित्र और भाई बन गए। आगे चलकर इस मित्रता से रणजीत सिंघ को बहुत लाभ हुआ। कहा
जाता है कि: 1. दोनों ने "श्री गुरू ग्रँथ साहिब जी" के सामने मित्रता की "शपथ" ली
और परस्पर आश्वासन दिया कि एक दूसरे के साथ मित्रता और शिष्टाचार का व्यवहार करेंगें
। 2. एक का शत्रु दूसरे का भी शत्रु समझा जाएगा । 3. एक दूसरे के क्षेत्र में वे
बगैर रोकटोक आ सकेंगें ।4. जो अन्य क्षेत्र अधीन किए जाएँगे, उनमें से एक दूसरे को
उचित हिस्सा देंगें। इस प्रकार आहलुवालिया सरदार की मित्रता से रणजीत सिंघ ने केवल
एक तरह से निश्चित हो गया बल्कि उसको एक ऐसे व्यक्ति की सेवाएँ भी प्राप्त हो गई जो
कि सिक्खों में अपनी ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध था। इसके परिणामस्वरूप ही रणजीत सिंघ
सारे पँजाब को अपने अधीन करने का कार्यक्रम अधिक तेजी से चला सका। दोनों ने अपने
साधन इकट्ठे किए और इस तरह पँजाब में शुक्रचक्किया, कन्हैया और आहलुवालिया मिसलों
की एकता स्थापित हो गई।