SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

24. सिक्खों का दिल्ली पर अधिकार

सन 1783 ईस्वी के प्रारम्भ में अधिकाँश सिक्ख मिसलों ने दिल्ली के प्रशासक को कमजोर जानकर उस पर धावा करने की योजना बनाई। इन में सरदार बघेल सिंह व सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया जी प्रमुख थे। सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया जी ने दिल्ली पहुँचने से पहले भरतपुर के जाट नरेश से एक लाख रूपये नज़राना वसूल किया। इसके उपरान्त दिल्ली नगर में प्रवेश कर गए। इस समय दल खालसा के जवानों की सँख्या तीस हजार थी। मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय उस समय सिक्खों का सामना करने में अपने को असमर्थ अनुभव कर रहा था, इसलिए वह शान्त बना रहा। अतः सिक्ख बिना लड़े ही दिल्ली के स्वामी बन गए। एक म्यान में दो तलवारें तो रह नहीं सकती थी। अतः बादशाह शाहआलम द्वितीय ने सिक्खों को प्रसन्न करने की समस्त चेष्टाएँ कीं और बहुत से नज़राने भेंट किए और अन्त में एक संधि का मसौदा प्रस्तुत किया। इस संधि पत्र पर सरदार बघेल सिंह व वजीर आजम गोहर ने हस्ताक्षर कियेः 1. खालसा दल को तीन लाख रूपये हर्ज़ाना के रूप में दिए जाएँ। 2. नगर की कोतवाली तथा "चुंगी" वसूल करने का अधिकार "सरदार बघेल सिंह" को सौंप दिया जाएगा। 3. जब तक गुरूद्वारों का निर्माण सम्पूर्ण न हो जाए, तब तक सरदार बघेल सिंह चार हजार सैनिक अपने साथ रख सकंगे। इस समय दल खालसा के तीस हजार सैनिक दिल्ली में अपना विशाल शिविर बनाकर समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। यही शिविर स्थल दल खालसे की छावनी बाद में तीस हजारी कोर्ट के नाम से विख्यात हुई। आजकल यहाँ तीस हजारी मैट्रो रेलवे स्टेशन है। सरदार बघेल सिंह जी के लिए सबसे कठिन कार्य उस स्थान को खोजना था, जहाँ नौवें गुरू, श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी को शहीद किया गया था। आपने एक वृद्ध स्त्री को खोजा जिसकी आयु उस समय लगभग 117 वर्ष थी। उसने बताया कि जहाँ चाँदनी चौक में मस्जिद है, वही स्थल है, जहाँ गुरूदेव विराजमान थे और उन पर जल्लाद ने तलवार चलाई थी। उसने बताया कि मैं उन दिनों 9 वर्ष की थी और अपने पिता के साथ आई थी। मेरे पिता ने वह स्थल अपनी मश्क से पानी डालकर धोया था। यह मस्जिद उन दिनों नहीं हुआ करती थी। इसका निर्माण बाद में किया गया, इससे पहले महा बड़ का वृक्ष था। सरदार बघेल सिंह जी को गुरूद्वारा निर्माण कार्य में बहुत संघर्ष करना पड़ा, कहीं बल प्रयोग भी किया गया परन्तु वह अपनी धुन के पक्के थे। अतः वह अपने लक्ष्य में सफल हो गए। उन्होंनेः

1. गुरूद्वारा श्री माता सुन्दर कौर साहिब जी
2. गुरूद्वारा श्री बँगला साहिब जी
3. गुरूद्वारा श्री रकाबगंज साहिब जी
4. गुरूद्वारा श्री शीश गँज (सीस गँज) साहिब जी
5. गुरूद्वारा श्री नानक प्याऊ साहिब जी
6. गुरूद्वारा श्री मँजनू टीला साहिब जी
7. गुरूद्वारा श्री मोती बाग साहिब जी
8. गुरूद्वारा श्री बाला साहिब जी

इत्यादि ऐतिहासिक गुरूद्वारों का निर्माण करवाया। सन् 1857 ईस्वी के गद्दर के पश्चात् राजा सरूप सिंह जींद रियासत ने कड़े परिश्रम के बाद विलायत से स्वीकृति लेकर गुरूद्वारा शीश गँज का आधुनिक ढँग से निर्माण करवाया। पँजाब लौटते समय बघेल सिंह जी ने अपना एक वकील लखपतराय दिल्ली दरबार में अपने प्रतिनिधि के रूप में छोड़ दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.