120. अदभुत कुर्बानी
(जो अपने धर्म, कौम और देश पर न्यौछावर हो जाते हैं, इससे बड़ी
अदभुत कुर्बानी और क्या होगी ?)
मुलतान के हाकिम नवाब मुजफर खाँ ने टके भरने मान तो लिए थे पर
उनका भुगतान करने में टालमटोल करता रहता था। वह दिल से महाराजा साहिब का विरोधी था,
इसलिए सन् 1817 (संवत् 1874) में महाराजा साहिब ने मुलतान को फतह करके सिक्ख राज्य
में शमिल करने और नित्यप्रति की टैं-टैं को समाप्त करने का फैसला किया। नवाब मुजफर
खाँ ने जेहाद का ऐलान किया। चारों ओर से मुसलमान गाजी इस जेहाद (इस्लामी युद्ध) में
शामिल होने के लिए आए। पहले मुलतान शहर के पास घमासान की लड़ाई हुई। मुजफर खाँ हारकर
शहर की फसील के अन्दर चला गया और दरवाजे बँद करके बैठ गया। खालसा फौज ने शहर की
दीवार कई स्थानों से तोड़ दी और अच्छी काटमार के पश्चात् शहर पर कब्जा कर लिया।
मुजफर खाँ किले में जा डटा। खालसा ने किले के आसपास घेरा डाल लिया और भयानक गोलाबारी
होने लग गई। एक मुसलमान लेखक, गुलाम जैलानी ने इस अवसर का आँखों देखा हाल की एक घटना
का वर्णन किया है जो यह बताता है कि सिक्खों में अपना बलिदान देने की भावना कितनी
जबरदस्त थी। वह लिखता है कि ‘जब किले की दीवारों के ऊपर गोलाबारी हो रही थी, एक तोप
का पहिया टूट गया। गोलाबारी करा रहे सरदार की राय थी कि कुछ समय और गौले फैंके जाएँ
तो किले की दीवार टूट जाएगी। पहिये की मरम्मत करवाने का समय नहीं था। सरदार ने अपने
साथियों को कहा, ‘खालसा जी ! कुर्बानी का समय है, कुर्बानी करो, तो सफलता हो सकती
है। पँथ की आन शान की खातिर कोई जवान पहिये की जगह पर अपना कँधा लगाए।’ बहुत से
नौजवान छलाँगे लगाते हुए आगे बढ़े और एक दूसरे से पहले कँधा लगाने का यत्न करने लगे।
सरदार के हुक्म से बारी बारी जवान आगे आते गए। तोप के गोले चलते रहे और हर बार एक
जवान शहीद होता गया, लगभग दस गोले डाले होंगे कि किले की दीवार टूट गई।’ यह घेरा
तीन मास तक जारी रहा। यह युद्ध बहुत ही भयानक हुआ। नवाब मुजफर उसके पाँच पुत्र तथा
भतीजे और बहुत से मित्र सम्बन्धी मारे गए। ज्येष्ठ सुदी 11 संवत् 1875 को मुलतान का
किला जीत लिया गया। उसके दो पुत्र जिन्दा गिरफ्तार कर लिये गए और लाहौर लाए गए। उनको
महाराजा ने शकरपुर में जागीर दी। इस विजय की खुशी में लाहौर निवासियों ने दीपमाला
की। महाराजा साहिब को याद था कि किस प्रकार पश्चिमोत्तर की ओर से पठान पँजाब पर
आक्रमण करके तबाही मचाते रहे थे। आपने इरादा किया था कि ऐसे आक्रमणों की पक्की
नाकाबँदी करनी है और पठानों को पँजाबियों के हाथ दिखाने हैं।