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117. श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी के नये स्वरूप की सम्पादना

(महापुरूषों की योग्यता पर शक करना सबसे बड़ी बेवकूफी है।)

श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने साबो की तलवँडी, जिला भटिँठा में दमदमी टकसाल (गुरमति शिक्षा केन्द्र) स्थापित किया तो उनको उस समय आदि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी की आवश्यकता अनुभव हुई। उन्होंने धीरमल को सँदेश भेजा और आग्रह किया कि कृप्या आदि श्री गुरू ग्रन्थ साहिब उन्हें दे दें जिससे युवा पीढ़ी को प्रशिक्षित किया जा सके परन्तु धीरमल ने बीड़ साहिब देने से इन्कार कर दिया। श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के रिश्ते में वह ताऊ के बड़े बेटे थे। अतः गुरू जी ने उनको बहुत सम्मान दिया। परन्तु धीरमल ने उनके अनुरोध को ठुकराते हुए बहुत कटु वचनों का प्रयोग किया ओर कहा– तुम स्वयँ को गुरू कहलवाते हो परन्तु नये ग्रंथ जी रचना नहीं कर सकते ? वास्तव में सिक्खों का गुरू मैं हूँ क्योंकि आदि श्री ग्रँथ साहिब मुझे विरासत में मिला है। इस अहँकार प्रवृति के कठोर वचन सुनकर गुरू जी के मुख से सहज भाव में यह शब्द निकले– तुम सिक्खों के गुरू कहाचित नहीं बन सकते, हाँ तुम भूत-प्रेतों के गुरू कहलाने योग्य हो क्योंकि तुम्हारी विचारधारा ही ऐसी है। समय के प्रवाह ने उनकी सन्तानों को भूत-प्रेतों का गुरू बना दिया और गुरू जी के वचन सत्य सिद्ध हुए। बाबा वडभाग सिंघ धीरमल की पाँचवी पुश्त में से हैं। इस घटना के पश्चात गुरू जी ने स्वयँ श्री आदि ग्रन्थ साहिब जी की बाणी पुनः उच्चारण की और भाई मनी सिंघ जी से लिखवाई और नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की बाणी इसमें सम्मिलित कर दी। जब यह सूचना धीरमल को मिली कि साहिब श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने श्री आदि ग्रन्थ साहिब जी का निर्माण कर लिया है तो वह ईर्ष्या से जल उठा। उसके मसँदों ने उसे खूब उतेजित किया, जिससे वह श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी द्वारा रचित श्री आदि ग्रन्थ साहिब जी पर शँकाये प्रकट करने लगा कि सह कैसे सम्भव हो सकता है कि जो ग्रन्थ उसके पास है उसकी नकल बिना देखे श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने कैसे तैयार कर लिया है। इसलिए श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी द्वारा रचित श्री आदि ग्रन्थ साहिब जी में कुछ ऋटियाँ अवश्य होंगी। इस प्रकार प्रतिस्पर्धा की आग में जलता हुआ वह अपने साथ मूल श्री आदि ग्रन्थ साहिब की बीड़ लेकर साबो की तलवण्डी पहुँचा। उसने गुरू जी के समक्ष दोनो ग्रन्थों के मिलान का प्रस्ताव रखा। गुरू जी ने सहर्ष स्वीकार करके यह अनुरोध स्वीकार कर लिया। फलस्वरूप दोनो पक्षों ने अपने-अपने ग्रँथों का एक-एक अक्षर मिलान किया परन्तु कोई अन्तर नहीं पाया गया। केवल नौवें गुरू श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की बाणी की रचनाएँ ही अधिक थीं जो कि इस बार सँकलित की गई थीं।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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