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110. एक कनफटे की मौत 

(जो गुरू का, भक्त का और महापुरूषों का कुछ अनिष्ट करने की सोचता है, उसका खुद का बड़ा अनिष्ट हो जाता है।)

उन दिनों खंडूर साहिब में कान कटा योगी तपी रहता था जो कि गुरू जी की महिमा को देखकर जलता था। लागों में गुरू जी की निंदा करता था और गुरू जी को नुक्सान पहुंचाने की ताक में रहता था। एक समय उस इलाके में वर्षा न हुई, लोग बहुत तंग होने लगे। खेती सूखने लगी। लोगों ने योगी को वर्षा के लिए कहा। तब योगी ने कहा तुम देखते नहीं, तुम्हारे गाँव में क्या हो रहा है। एक परिवार वाला आदमी लोगों से पूजा करवा रहा है। आप उस गुरू को गाँव से निकाल दो फिर देखो कितने जोर की वर्षा पड़ती है। गाँव के सब लोग गुरू जी के पास गये और कहा कि आप यहाँ से जाओगे, तभी वर्षा होगी। गुरू जी वहाँ से चले गये, लेकिन गुरू जी के जाने के बाद भी वर्षा नहीं हुई। तब पाखंडी योगी ने लोगों से बहुत सा रूपया बटोरा। इसके बाद भी वर्षा नहीं हुई। उधर अमरदास जी (जो बाद में तीसरे गुरू बने) ने कहा कि तुम जिस खेत में इस योगी को मारते ले जाओगे, उसी खेत में वर्षा होगी। ऐसा ही किया गया, जो भी उसे मारते हुए अपने खेत में ले जाता, वहीं वर्षा होने लगती। सब लोग मिलकर उसे अपने अपने खेतों में खीचनें लगे। किसी ने उसकी टाँग तोड़ ली किसी ने हाथ तोड़ लिया। जिस किसी खेत में उसके शरीर का काई भी भाग चला जाये, वहीं पर बारिश होने लगती थी। इस बात का जब गुरू अंगद देव जी को मालूम हुआ तो वह बहुत नाराज हुए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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