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107. पीर हम्जा गौस

(परमात्मा की बनाई गई दुनियाँ में सभी लोग बेईमान नहीं होते। कुछ ऐसे भी ईमानदार होते हैं, जो कि अपना ईमान बेचने के लिए कभी तैयार ही नहीं होते।)

श्री गुरू नानक देव जी, पँजाब के स्यालकोट नगर में पहुँचे। नगर के निकट में एक घनी छायादार बेरी का वृक्ष था। उसके नीचे डेरा डालकर गुरुदेव कीर्तन में व्यस्त हो गए। परन्तु अधिकाँश लोग नगर को अपने सामान सहित छोड़कर बाहर जाते दिखाई दिये। पूछने पर पता चला कि हम्जा गौस नामक सूफ़ी फ़कीर नगर को तबाह करने के लिए चिल्ला, 40 दिन का उपवास करते हुए तपस्या कर रहा है। जिसका समय कल दोपहर को पूर्ण होने जा रहा है। वह सामने जो मस्जिद नुमा गुबँद है, उसका आश्रम भी वहाँ पर ही है। नगर के विनाश की बात सुनकर, वह भी एक फ़कीर द्वारा, गुरुदेव गम्भीर हो गए। तभी कुछ स्थानीय कुलीन पुरुषों ने आपके पास विनती की कि आप भी प्रभु में अभेद महापुरुष दिखाई देते हैं, अतः आप इस विषय में समय रहते कुछ करें जिससे विपदा से छुटकारा मिले और सभी का कल्याण हो। गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को हम्ज़ा गौंस के आश्रम में यह सँदेश देकर भेजा कि गुरू जी उस फ़कीर से मिलना चाहते है। भाई मरदाना जी के वहाँ पहुँचने पर उसके मुरीदों ने कहा कि पीर जी के कड़े आदेश हैं कि चिल्ला समाप्त होने से पहले उनसे कोई भी सम्पर्क न किया जाए, क्योंकि ऐसे में चिल्ले में बाधा पड़ सकती है। परन्तु गुरुदेव ने अपना संदेश पुनः भेजा कि उनका फ़कीर साईं से मिलना अति आवश्यक है, अतः समय रहते वह एक बार मिलने की व्यवस्था अवश्य करें। इस बार भी उसके मुरीदों ने भाई जी को वापिस निराश ही लौटा दिया। वे कहने लगे उन्हें तो अपने पीर जी के आदेश पर पहरा देना है। अतः वे इस सँदेश को किसी प्रकार भी उन तक नहीं पहुँचा सकते। तीसरी बार गुरुदेव ने भाई जी के हाथ संदेश भेजा कि उनका संदेश पीर जी तक अवश्य ही पहुँचाएँ, अन्यथा उसके चिल्ले में अल्लाह की तरफ से बाधा उत्पन्न होगी क्योंकि अल्लाह अपनी ख़लकत को बर्बादी से बचाने का कोई उपयुक्त उपाय जरूर करेगा। पीर जी के मुरीदों ने सँदेश को सुनकर उस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं की। भाई जी वापस लौट आए। दूसरे दिन ठीक दोपहर को उस कमरे का गुम्बद एक तेज तूफान के वेग से धमाके के साथ टूटकर नीचे जा गिरा। जिससे कमरे मे सूर्य के तेज प्रकाश से पीर जी की इबादत मे खलल पड़ गई। इस प्रकार उसका चिल्ला सम्पूर्ण होने से पहले ही बाधा उत्पन्न होने के कारण समाप्त हो गया। वह भयभीत होकर इबादतगाह से बाहर आये और मुरीदों से पूछने लगे। यह क्या हुआ है और कैसे हो गया है ? इस पर मुरीदों ने गुरुदेव के सँदेशों के विषय में विस्तार पूर्वक बताया कि वे, गुरू जी आपसे चिल्ला सम्पूर्ण होने से पहले मिलना चाहते थे, जिससे नगर को नष्ट होने से बचाया जा सके। पीर जी ने तब गुरुदेव के बारे में जानकारी प्राप्त की और पूछा वे इस समय कहाँ है ? मुरीदों ने उत्तर में बताया कि वे सामने बेरी के वृक्ष के नीचे बैठे, जनता के बीच कुछ गाना बजाना करते रहते हैं। पीर हम्ज़ा गौंस तब अपनी पालकी पर सवार होकर गुरुदेव के पास पहुँचा।

अभिवादन के पश्चात् बैठकर पूछने लगा– आपने मुझे सँदेश भेजा था अतः मैं हाजिर हो गया हूँ। गुरु जी ने तब उन पर प्रश्न किया– क्या ख़ालक की ख़लकत (प्रभु के बनाए लोगों) को सुख देना पीर, फ़कीरों का काम है या दुख देकर उनको बर्बाद करना ? पीर को उत्तर नहीं सूझा। वह कहने लगा– यह सारा नगर नाशुक्रों, अकृतधन (जो परमात्मा का खौफ न करे या किया गया वादा भूल जाएँ) का है इसलिए इसे बर्वाद होना ही चाहिए। इस पर गुरुदेव जी ने कहा– आपको कैसे मालूम हुआ कि यहाँ पर अल्लाह का खौफ़ रखने वाला कोई नहीं ? इस पर पीर जी कहने लगे– सभी के सभी ऐसे ही हैं। यदि यकीन न आए तो नगर का सर्वेक्षण करवाकर देख लें। इस पर गुरुदेव ने भाई मरदाना जी को एक युक्ति द्वारा जाँच के लिए भेजा तथा कहा, बाजार से एक पैसे का सत्य तथा एक पैसे का झूठ खरीद कर लाओ। भाई मरदाना जी जब बाजार चले गए। तब पीर कहने लगा– बात दरअसल यह थी कि यहाँ का एक व्यापारी मेरे पास पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर आता था। अतः मैंने उससे एक वादा लिया था कि उसके यहाँ दो पुत्र होंगे उनमें से एक मुझे भेंट में देना होगा। वह उस समय सहर्ष मानकर, पुत्र प्राप्ति का वरदान ले गया था। परन्तु जब उसके यहाँ दोनों सन्तानें हो गई तो उसने मुझे एक भी बेटा देने से साफ इन्कार कर दिया। अतः यहाँ सब बेईमान ही रहते हैं। इस पर गुरुदेव ने कहा– यह सब ठीक है परन्तु आपने इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश की है कि यह वादा खिलाफी क्यों हुई ? पीर जी कहने लगे– इन बातों से मुझे कोई सरोकार नहीं। इस पर गुरु जी ने कहा– आप, वास्तव में माँ की ममता को नहीं जानते। वह चाहते हुए भी बच्चे को किसी भी कीमत पर अपने से अलग नहीं कर सकती। अतः यहाँ पर ममता की मजबूरी रही है। जबकि आपको निस्वार्थ होकर अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करनी चाहिए थीं। पीर जी को अपनी भूल का एहसास हो गया। दूसरी तरफ भाई मरदाना जी नगर के प्रत्येक दुकानदार से एक पैसे का सत्य तथा एक पैसे का झूठ खरीदने के लिए पूछताछ करते रहे, परन्तु नगर में किसी ने भी वह सौदा न खरीदा था न बेचा था। अतः वे सब इस आश्चर्य जनक सौदे को समझ ही नहीं पाते थे। अन्त में सौदे के इस रहस्य को मूलचन्द नामक एक युवक ने समझा और उसने दोनों पैसे लेकर एक कागज पर तुरन्त लिख दिया कि जीवन झूठ है तथा मृत्यु सत्य है। गुरू जी ने कागज का वह टुकड़ा पीर के सामने प्रस्तुत किया और कहा– देखो यह बात वही लिख सकता है जो "सदैव प्रभु के खौफ में" रहता है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं, इसलिए गुरुदेव ने कहा, परिस्थितियाँ व्यक्ति को कभी-कभी मजबूर कर देती हैं। जिससे वह गलत साबित हो जाता है, वास्तव में सभी बेइमान नहीं होते। अच्छे-बुरे सभी प्रकार के लोग प्रत्येक स्थान पर पाए जाते हैं। यही प्रकृति का विधान है। हम्ज़ा गौंस ने गुरुदेव के चरणों मे गिर कर क्षमा माँगते हुए कहा– आपने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है जो मुझे एक बहुत बड़ी भूल करने से बचा लिया है। अन्यथा न जाने कितने निर्दोष लोग मेरी वजह से बिना कारण मारे जाते गुरुदेव ने उन्हें निस्वार्थ होकर लोगों की सेवा करने की प्रेरणा दी। युवक मूलचँद, जिसके विवाह का दिन निश्चित हो चुका था, वह गुरुदेव का ऐसा भक्त बना कि कहने लगा, हे गुरुदेव मुझे भी सदैव अपने चरणों में ही रखें, जहां जाए मुझे साथ ले चलें। गुरुदेव ने उसे बहुत समझाया कि उनके साथ रहने पर जीवन में बहुत कष्ट झेलने पड़ सकते हैं क्योंकि हर समय परिस्थितियाँ एक सी नहीं रहती परन्तु मूलचन्द नहीं माना। वह कहने लगा, मुझे सब कुछ स्वीकार होगा और वह गुरुदेव के साथ चल पड़ा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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