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106. मसकीनियां पहलवान

(गुरू सेवा के लिए अपने आपको समर्पित करने वाला हमेशा फायदे ही फायदे में रहता है। कई बार छोटी-छोटी सेवा, करते-करते बहुत विशाल और बड़ी सेवा का रूप धारण कर लेती हैं।)

श्री गुरू नानक देव जी विजयवाड़ा नगर से दक्षिण हैदराबाद पहुँचे। वहाँ पर एक एकाँत स्थान पर झील के किनारे गुरुदेव जब अमृत बेला के समय प्रभु स्तुति में, कीर्तन कर रहे थे तो वहाँ से एक श्रमिक ईधन के लिए लकड़ी लेने जँगल को जा रहा था। मीठी बाणी के आकर्षण से वह आगे नहीं बढ़ पाया एवँ वहीं रुककर गुरुदेव के निकट बैठकर कीर्तन का रसास्वादन करता रहा। कीर्तन की समाप्ति पर गुरुदेव से अनुरोध करने लगा, आप कृपया मेरे घर पधारें। गुरुदेव ने उसके प्रेम को जानकर उसके यहाँ विश्राम करना स्वीकार कर लिया। श्रमिक ने गुरुदेव को बहुत आदर भाव से भोजन कराया। परन्तु चूँकि वह तो गरीब था, सो दूसरी बार के भोजन के लिए उसके पास कुछ भी न था। अतः कुछ धन अर्जित करने के लिए वह नगर की ओर चल पड़ा। नगर में जाकर देखा तो पता चला कि स्थानीय राजा ने अपने यहाँ एक कुश्ती का आयोजन किया हुआ था। उस क्षेत्र का सुप्रसिद्ध पहलवान मसकीनिया जो कि उपाधि प्राप्त कर चुका था तथा अनेक स्थानों से विजयी घोषित हो रहा था, वह चुनौती दे रहा था कि ‘है कोई माई का लाल जो मुझसे कुश्ती कर सके। नगर में प्रशासन की तरफ से डौंडी पिटवाकर घोषणा की जा रही थी कि यदि कोई भी मसकीनिया पहलवान की चुनौती स्वीकार करेगा उसे विजयी होने पर 500 रुपये पुरस्कार रूप में दिये जाएँगे। यदि वह पराजित हो जाता है तो उसे 100 रू क्षति पूर्ति के रूप में दिये जाएँगे। यह घोषणा सुनकर गरीब श्रमिक ने मन ही मन कहा, यदि मैं इस चुनौती को स्वीकार कर लेता हूँ तो मुझे पराजित होने पर भी क्षति पूर्ति में रुपये मिलेंगे। जिससे मैं घर पर ठहरे हुए फ़कीरों की भोजन व्यवस्था करके उनकी सेवा में खर्च कर दूँ तो मैं पुण्य कमा सकता हूँ। अतः उसने यह चुनौती तुरन्त स्वीकार करने की घोषणा कर दी। जबकि वह जानता था भले ही वह हष्ट-पुष्ट है परन्तु पहलवान के सामने टिक पाना उसके बस की बात नहीं। उसके एक झटके मे उसकी हड्डियाँ टूट जाएँगी। किन्तु उसके सामने एक आदर्श था, जिसके लिए वह अपने प्राणों की आहुति देने को भी तत्पर था। विशाल जनसमूह के सामने अखाड़े में जब विजेता मसकीनिया पहुँचा तो उसको अपने सामने एक साधारण युवक को देखकर आश्चर्य हुआ तथा वह व्यँगपूर्वक बोला, हे युवक क्यों बिना कारण मेरे हाथों मरना चाहते हो, क्या, तुझे अपना जीवन प्यारा नहीं ? इसके उत्तर में श्रमिक युवक बोला, बात ऐसी है कि मेरे यहाँ संत पधारे हैं। उनकी भोजन व्यवस्था के लिए मुझे रुपयों की अति आवश्यकता है। बस इस काम के लिए मैं अपने जीवन को उन पर न्यौछावर करने को तैयार हूँ। यह सुनते ही अभिमानी मसकीनिया पर बज्रपात हुआ, उसका मन भर आया। वह पसीज गया तथा उसका अभिमान क्षण भर में जाता रहा। वह सोचने लगा यदि उसे भी ऐसी सेवा में इस व्यक्ति का हाथ बटाने का शुभ अवसर मिल जाए तो शायद उसका भी कल्याण हो जाए। उसने तुरन्त निर्णय लिया कि मैं अपनी उपाधि इस श्रमिक युवक को दे दूँगा, जिससे बाकी का जीवन शान्त-सहज गुजारने का आनन्द लूँगा, अतः अब इसी में उसका भला है। कुश्ती प्रारम्भ हुई। दोनों ओर से दाव-पेच होने लगे। देखते ही देखते एक ही झटके से श्रमिक युवक ने मसकीनीया पहलवान को पटककर धराशायी कर दिया। वास्तव में मसकीनिया पहलवान ने युवक का प्रतिरोध ही नहीं किया जिससे वह क्षण भर पराजित घोषित हो गया। श्रमिक युवक को प्रशासन की तरफ से सम्मानित करते हुए पुरस्कार की निर्धारित नकद धनराशि तथा उपाधि दोनो ही प्रदान की गईं। जिससे वह खुशी-खुशी घर लौटा। मसकीनीया पहलवान भी उसके साथ चलकर यहाँ गुरुदेव के दर्शनों के लिए पहुँचा। गुरुदेव ने उसकी कुर्बानी तथा नम्रता के लिए उसको आशीर्वाद दिया तथा कहा सदैव सुखी बसो।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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