102. भाई लालो और मलिक भागो
(हराम की और लूट-खसोट की कमाई की रोटी से कभी खुख-चैन नहीं मिल
सकता। जबकि ईमानदारी और मेहनत की रोटी में सभी प्रकार के सुख-चैन हैं।)
श्री गुरू नानक देव जी परमात्मिक ज्ञान बाँटने के लिए पहली
प्रचार यात्रा (पहली उदासी) पर निकले, गुरू जी सुल्तान पुर लोधी से लम्बा सफर तय
करके सैदपुर नगर में पहुँचे। वहाँ पर उनको बाजार में एक बढ़ई लकड़ी से तैयार की गई
वस्तुएँ बेचता हुआ मिला जो कि साधू सँतों की सेवा किया करता था। जिसका नाम लालो था।
उसने नानक जी को अपने यहाँ ठहरने का निमन्त्रण दिया। गुरू नानक देव जी ने यह निमन्ण
स्वीकार करके भाई मरदाना सहित उसके घर जा पधारे। भाई लालो समाज के मध्य वर्ग का
व्यक्ति था जिसकी आय कठोर परीश्रम करने पर भी बहुत निम्न स्तर की थी तथा उसे हिन्दू
वर्ण-भेद के अनुसार शूद्र अर्थात नीच जाति का माना जाता था। इस गरीब व्यक्ति ने
गुरुदेव की यथा शक्ति सेवा की जिसके अन्तर्गत बहुत साधारण मोटे अनाज, बाजरे की रोटी
तथा साग इत्यादि का भोजन कराया। मरदाने को इस रूखे-सूखे पकवानों में स्वादिष्ट
व्यँजनों जैसा आनन्द मिला। तब भाई मरदाना ने गुरुदेव से प्रश्न किया कि यह भोजन
देखने में जितना नीरस जान पड़ता था सेवन में उतना ही स्वादिष्ट किस तरह हो गया है ?
तब गुरुदेव ने उत्तर दिया, इस व्यक्ति के हृदय में प्रेम है, यह कठोर परीश्रम से
उपजीविका अर्जित करता है। जिस कारण उसमें प्रभु कृपा की बरकत पड़ी हुई है। यह जानकर
भाई मरदाना सन्तुष्ट हो गया। गुरू जी भाई लालो के यहाँ रहने लगे। उस समय किसी ऊँचें
कुल के पुरूष का किसी शूद्र के घर में ठहरना और उसके घर में खाना खाना बहुत बुरा
समझा जाता था। पर गुरू जी ने इस बात की कोई परवाह नहीं की। एक बार उसी नगर के बहुत
बड़े धनवान जागीरदार मलिक भागो ने ब्रहम भोज नाम का बड़ा भारी यज्ञ किया और नगर के सब
साधूओं और फकीरों को निमंत्रण दिया साथ ही गुरू नानक देव जी को भी निमंत्रण दिया गया।
इस ब्रहम भोज (यज्ञ) में जबरदस्ती गरीब किसानों के घरों से गेहूँ, चावल आदि का
सँग्रह किया गया था। इसी प्रकार और गरीब लोगों से भी नाना प्रकार की सामग्री इकटठी
की गई थी। परन्तु नाम मलिक भागो का था, इसलिए गुरू जी ने यज्ञ में जाने से इन्कार
कर दिया और सब साधु सन्त फकीर आदि खूब पेट भरकर यज्ञ का भोजन खा आये थे। इतिहास में
लिखा है कि गुरू जी को जब मजबूर करके यज्ञ स्थान में ले गये। और अभिमानी मलिक भागो
ने गुरू जी को कहा– ब्रहम भोज में क्यों नहीं आये ? जबकि सब मतों के साधु भोजन खा
कर गये हैं। यज्ञ का पूरी–हलवा छोड़कर एक शूद्र के सूखे टुकड़े चबा रहे हो। तब गुरू
जी ने मलिक भागो को कहा– आप कुछ पूरी हलवा ला दो, मैं आपको इसका भाव बताऊं कि मैं
क्यों नहीं आया ? उधर गुरू जी ने भाई लालो के घर का सूखा टुकड़ा मंगवा लिया। गुरू जी
ने, एक मुटठी में मलिक भागो का पूरी हलवा लेकर और दूसरी मुटठी में लालो का सूखा
टुकड़ा पकड़ कर निचोड़ा, तब "हलवा और पूरियों से खून की धार" बहने लगी और "सूखे रोटी
के टुकड़े से दूध की धार" हजारों लोग इस दृश्य को द खकर दंग रह गये। तब गुरू जी ने
कहा भाइयों यह है "धर्म की कमाई: दूध की धारें" और यह है "पाप की कमाई: खून की धारें"
इसके बाद वह मलिक भागो गुरू जी के चरणों में लिपट गया और पहले किये गये पापों का
प्रायश्चित करके, धर्म की कमाई करने लगा।