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96. रामराय का दिल्ली दरबार के लिए प्रस्थान 

(गुरूबाणी में फेरबदल करने वाले का बहुत बूरा हाल होता है। गुरूबाणी जैसी लिखी है, वैसी ही पढ़नी चाहिए और वैसी ही सुनानी भी चाहिए।)

औरँगजेब के पत्र पर श्री गुरू हरिराय जी ने अपने बड़े पुत्र राम राय को बुलाया और कहा– बेटे तुम हमारे प्रतिनिध के रूप में बादशाह औरँगजेब को मिलने और उसके हृदय के भ्रम को दूर करने जाओं, जो उसने सिक्ख सिद्धान्तों के प्रति गलत धारणा बना रखी है। गुरूदेव जी के आदेश अनुसार रामराय जब दिल्ली प्रस्थान करने लगा तो गुरूदेव जी ने उसे सतर्क किया। बेटा तुम अभय होकर सत्य पर पहरा देना, किसी राजनीतिक दबाव में न आना। देखना, औरंगजेब मक्कार है, वह छलकपट का सहारा लेगा, उसकी चालपूसी नहीं करनी। वह बहुत कट्टर प्रवृति का है, उसे उचित उत्तर देने हैं। इस पर रामराय जी ने पिता गुरूदेव जी से निवेदन किया कि मैं तो साधारण मनुष्य हूँ, बादशाह और उसकी मण्डली का कैसे सामना कर पाऊँगा। उत्तर में गुरूदेव जी ने उसे आशीष दी और कहा– गुरू नानक देव तुम्हारे अंग-संग रहेंगे जो तुम कहोगे, सत्य सिद्ध होगा। किन्तु देखना आत्मबल का कहीं दुरूपयोग न करना। दिल्ली दरबार में पहुँचने पर रामराय ने गुरू घर की ओर से बहुत अच्छा प्रदर्शन किया जिस कारण औरँगजेब उससे बहुत प्रभावित हुआ। इस प्रकार औरँगजेब ने रामराय से भला व्यवहार किया। उत्साहित होकर रामराय ने विभिन्न प्रकार के करतब दिखाये और कई तरह के चमत्कारों की प्रदर्शनी की। कहा जाता है कि कई प्रकार की विभिन्न अनहोनीयों को होनी कर दिखाया। अब औरँगजेब ने धार्मिक चर्चा चलाई। कुछ लोगों ने उसके कान भर रखे थे कि गुरू नानक देव की बाणियों में मुसलमानों के खिलाफ काफी कुछ अनर्गल कहा गया है।
एक दिन औरँगजेब ने काजियों के कहने पर पूछ लिया– कि तुम्हारे ग्रँथों में गुरू नानक जी की बाणी में इस्लाम की तौहीन की गई है, वह मुसलमानों के बारे में अच्छी राय नहीं रखते। उदाहरण के लिए उन्होंने लिखा है–

मिटी मुसलमान की पेडै पइ कुमिआर ।।
घरि भांडे इटां कीआ जलदी करे पुकार ।।
जलि जलि रोवै बपुड़ी झडि-झड़ि पवहि अंगिआर ।।
नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणै करतार ।।
राग आसा अंग 446 

इस प्रश्न का उत्तर था कि गुरूदेव जी इस पँक्ति के माध्यम से सत्य उजागर कर रहे हैं कि हिन्दु पार्थिव शरीर को तुरन्त जला देते हैं, परन्तु मुसलमान के शव की जब मिट्टी बन जाती है, तो उसकी कब्र की चिकनी मिट्टी को कुम्हार, बर्तन, ईंटे इत्यादि बनाकर भट्टी में बाद में जलाते हैं। मिट्टियाँ ही जलती हैं, यह उस प्रकृति का नियम है। रामराय औरँगजेब को प्रसन्न करना चाहता था। अतः उसके मायाजाल में फँसकर चापलूस बन गया था। अतः उसने खुशामद करने के विचार से कह दिया– कि मिट्टी मुसलमान की नहीं कहा गया, ‘मिट्टी बेईमान की’ कहा गया है। इस उत्तर से औरँगजेब के दिल को सुकून मिला। इस बीच दिल्ली की संगत से गुरू हरिराय जी को अपने बेटे के प्रत्येक कारनामों की जानकारी मिल चुकी थी। गुरूदेव को रामराय द्वारा औरँगजेब की चापलूसी करना बहुत ही बुरा लगा और वह नहीं चाहते थे कि अलौकिक शक्तियों का प्रदर्शन एक मदारी के खेल के रूप में किया जाये। उनको सबसे अधिक दुखदायक बात गुरूवाणी की पँक्तियों में परिवर्तन करने की लगी। वह नहीं चाहते थे कि पूर्व गुरूजनों की बाणी में कोई हेरफेर किया जाये। अतः उन्होंने एक पत्र द्वारा रामराय को सूचित किया कि तुम अपराधी हो क्योंकि तुमने जानबूझ कर गुरूबाणी की पँक्तियों को बदला है। मैं यह सब सहन नहीं कर सकता, इसलिए हम तुम्हें घर से निष्कासित (बेदखल) करते हैं क्योंकि यह तुम्हारा अपराध अक्षम्य है। रामराय को इस पत्र का कोई उत्तर नहीं सूझा। अब उसे अहसास हो रहा था कि उससे बहुत बड़ी गलती हुई है। जब औरँगजेब को पता लगा कि गुरू हरिराय जी ने रामराय को बेदखल कर दिया है तो उसने रामराय की सहायता करने की ठान ली। उसने रामराय को यमुना व गँगा नदी के बीच का पर्वतीय क्षेत्र उपहार में भेंट कर दिया, जो कालान्तर में देहरादून नाम से प्रसिद्ध हुआ।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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