92. भाई बुद्धु शाह
(कभी भी किसी का तिरस्कार और निरादर नहीं करना चाहिए।)
भाई बुद्धुशाह लाहौर का एक धनाढय व्यक्ति था। यह ईंटों का
निर्माण या व्यापार करता था। परन्तु किसी कारण इसके ईंटों के भटठे में नुक्स
उत्पन्न हो गया जिस कारण ईंटें उत्तम श्रेणी की नहीं बन पा रही थी। अतः उन्हें लाभ
के स्थान पर हानि हो जाती थी। जब उन्हें मालूम हुआ कि श्री गुरू नानक देव साहिब जी
के उत्तराधिकारी श्री गुरू अरजन देव साहिब जी जनकल्याण के कार्यों के लिए लाहौर
विचरण कर रहे हैं तो वह गुरू जी के समक्ष अपनी विनती लेकर उपस्थित हुआ और निवेदन
करने लगा कि कृप्या आप संगत सहित मेरे गृह में पधारें क्योंकि समस्त संगत से प्रभु
चरणों में प्रार्थना करना चाहता हूँ कि वह मेरे व्यवसाय में बरकत डाले जिससे मुझे
हानि के स्थान पर लाभ हो। गुरू जी ने उसकी श्रद्धा देखकर उसके यहाँ के कार्यक्रम
में सम्मिलित होने की स्वीकृति दे दी। निश्चित समय पर भाई बुद्धुशाह जी के यहाँ एक
विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें समस्त संगत के लिए लँगर का वितरण भी था।
गुरू जी के वहाँ विराजने से संगत का बहुत बड़े पैमाने पर जमावड़ा हो गया। सर्वप्रथम
कीर्तन की चौकी हुई, तदपश्चात गुरू जी ने समस्त मानवता के प्रति प्रेम के लिए
प्रवचन कहे और अन्त में प्रभु चरणों में अरदास की गई कि हे प्रभु ! भाई बुद्धु शाह
के ईंटों के भटठे की ईंटें पूर्ण रूप से पक जाएँ। समस्त संगत ने भी इस बात को ऊँचें
स्वर में कहाः भाई बुद्धु शाह का आवा पक्का होना चाहिए। किन्तु मुख्य दरवाजे के
बाहर खड़े एक व्यक्ति ने संगत के विपरीत गुहार लगाई। भाई बुद्धु शाह का आवा कच्चा ही
रहना चाहिए। संगत का ध्यान बाहर खड़े उस व्यक्ति पर गया जिसका नाम भाई लखू पटोलिया
था, वह व्यक्ति मस्ताना फकीर था, इसलिए इसके वस्त्र मैले, पुराने तथा अस्त-व्यस्त
थे किन्तु गुरू जी के दर्शनों की लालसा उसे वहाँ खींच लाई थी। स्वागत द्वार पर खड़े
मेजबानों ने उसे अतिथि नहीं माना और प्रवेश नहीं करने दिया। इस पर भाई लखू पटोलिया
जी ने उनसे निवेदन किया कि मैं केवल गुरू जी के दर्शन करना चाहता हूँ और मुझे किसी
वस्तु की अभिलाषा नहीं है। किन्तु उसकी विनती पर किसी ने ध्यान नहीं दिया अपितु
तिरस्कार की दृष्टि से देखकर दूर खड़े रहने का आदेश दिया। जब गुरू जी ने गुहार करने
वाले व्यक्ति के विषय में जानकारी प्राप्त की तो उन्होंने भाई बुद्धु शाह से कहा कि
आप से बहुत बड़ी भूल हो गई है। इस बाहर खड़े व्यक्ति ने दिल से प्रार्थना के विपरीत
गुहार लगाई है। अतः अब हमारी प्रार्थना प्रभु स्वीकार नहीं करेंगे। क्योंकि वह अपने
भक्तजनों की पीड़ा सर्वप्रथम सुनते हैं। यह सुनते ही भाई बुद्धु शाह गुरू जी के चरणों
पर गिर पड़ा और कहने लगा कि मैंने इस बार बहुत भारी कर्ज लेकर भटठा पकवाने पर व्यय
किया है। यदि इस बार भी ईंटें उचित श्रेणी की न बन पाईं तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा।
तब गुरू जी ने समस्या का समाधान किया और कहा कि यदि तुम भाई लखू पटोलिया जी को
प्रसन्न कर लो तो आपके लिए कुछ कर सकते हैं। मरता क्या नही करता, कविदन्ती अनुसार
भाई बुद्ध शाह प्रायश्चित करने के लिए भाई लखू पटोलिया के चरणों में जा गिरा और
विनती करने लगा कि मुझे आप क्षमा कर दें, मुझसे अनजाने में आपकी अवज्ञा हो गई है।
दयालु भाई लखू जी उसकी दयनीय दशा देखकर पसीज गए और उन्होंने वचन किया, तुम्हारा आवा
तो अब पक्का हो नही सकता किन्तु दाम तुम्हें पक्की ईंटों के समान ही मिल जाएँगे।
भाई लखू जी के वचन सत्य सिद्ध हुए। भाई बुद्धु शाह का आवा इस बार भी कच्चा ही निकला
परन्तु वर्षा ऋतु के कारण ईंटों का अभाव हो गया। स्थानीय प्रशासन को किले की दीवार
की मरम्मत करवानी थी अथवा नवनिर्माण का कार्य समय पर पूरा करना था, अतः ठेकेदारों
ने भाई बुद्धु शाह को पक्की ईंटों का दाम देकर समस्त ईंटें खरीद लीं।