88. कौडा राक्षस
(कभी भी किसी को नीच जाति होने की वजह से अपमानित नहीं करना
चाहिए क्योंकि परमात्मा ने सभी को एक जैसा ही बनाया है और यह ऊँच-नीच इन्सान के
द्वारा बनाई गई है।)
श्री गुरू नानक देव जी उज्जैन से जयपुर के लिए चल पड़े। इस लम्बे
मार्ग में पठारी क्षेत्र पड़ता है अतः उन दिनों में वहाँ पर जनसँख्या नाम मात्र को
थी। कहीं-कहीं जँगल थे तथा कहीं-कहीं पहाड़ी टीले थे। रास्ते में झीलवाड़, कोटा तथा
बूँदी इत्यादि छोटे-छोटे नगर पड़ते थे परन्तु इन नगरों के बीच की लम्बी दूरी में
आदिवासी भीलों का क्षेत्र था जो कि अपने घर टीले पर बनाते थे तथा उसमें विशेष
प्रकार के सूराख छेद्र रखते थे जिससे वे अपने शत्रु, शिकार की दूर से ही पहचान कर
सकते थे तथा उसको पकड़कर मारकर खाते थे। गुरुदेव जब कोटा से बूँदी के मध्य यात्रा कर
रहे थे तो वहाँ पर भाई मरदाना जी को भोजन, पानी अथवा कँदमूल फल इत्यादि की खोज में
कुछ दूर इधर उधर जाना पड़ा, जिससे वह भील लोगों के क्षेत्र में पहुँच गए और भीलों ने
उन्हें आँगन्तुक होने के कारण शत्रु का भेदिया जानकर पकड़ लिया गया। भीलों ने उनको
अपने सरदार कौडा के पास प्रस्तुत किया। कौडा ने बदले की भावना से भाई मरदाना जी को
मृत्यु दण्ड देने की घोषणा कर दी, जिसके अनुसार उनको जीवित जलाकर मार देने का
कार्यकर्म बनाया गया। इस काम के लिए तेल का कड़ाह गर्म करना प्रारम्भ कर दिया गया।
दूसरी तरफ भाई मरदाना जी के समय से न लौटने के कारण गुरुदेव स्वयँ उनकी खोजखबर को
निकले। जल्दी ही वह पद चिन्हों का सहारा लेते हुए उस जगह पर पहुँच गए जहां पर भाई
जी को बाँधकर रखा गया था। उधर भाई मरदाना जी भीलों के कब्जे में भयभीत अवस्था में
प्रभु चरणों में प्रार्थना में लीन थे कि तभी गुरुदेव जी वहाँ पहुँच गए। भीलों के
सरदार कौडा को बहुत आश्चर्य हुआ कि उनके सुरक्षित स्थान तक वह किस प्रकार पहुँचे ?
उसने गुरुदेव पर प्रश्न किया? आप कौन हैं ? उत्तर में गुरुदेव ने कहा? हम अपने साथी
की खोज में आए हैं तथा परमेश्वर के भक्त हैं। यह सुनकर वो कहने लगा? परमेश्वर के
बन्दे तो सभी हैं परन्तु नगर में बसने वाले धनी तथा ऊँची जाति के लोग हमें नीच कहकर
सदैव अपमानित करते हैं तथा हमें तो वे देखना भी नहीं चाहते। यदि परमेश्वर के सभी
बन्दे हैं तो वे हम से ऐसा दुर्व्यवहार क्यों किया जाता है ? उत्तर में गुरुदेव जी
ने कहा? आप ठीक कहते हैं, परन्तु इसमें कुछ दोष आपका अपना भी है। आप भी बदले की
भावना से उन लोगों के भूले-भटके साथियों की हत्या कर देते हो जिससे दोनों तरफ
शत्रुता की भावना बढ़ती ही चली जा रही है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो शत्रुता और बढ़ेगी।
इसका एक ही उपाय है कि आप बदले की भावना त्यागकर हृदय में प्रेम धारण करें तथा उन
लोगों से भद्र व्यवहार करें जिससे सहज ही निकटता आ जाएगी। क्योंकि द्वैष भावना को
मिटाने का प्रेम ही एक मात्र साधन है। इस शिक्षा का कौडा पर बहुत अच्छा प्रभाव हुआ।
उसने गुरुदेव के वचन माने तथा भाई मरदाना जी के बन्धन तुरन्त खोलने का आदेश दिया।
इस पर कौडा के साथियों ने कुछ कँद-मूल, फल गुरुदेव को दिये जो उन्होंने मरदाने को
देकर बाकी बाँट दिये तथा भाई जी को रबाब थमाई और इन लोगों के उद्धार के लिए शब्द
गायन किया, जिसे सुनकर सभी परमात्मिक कीर्तन से बहुत प्रभावित हुए।