82. सच्ची नमाज का ठंग
(पाठ करते समय, सजदा करते समय, नमाज पढ़ते समय अगर आपका मन कहीं
और है तो फिर यह सब करने का फायदा ही क्या है ?)
एक बार श्री गुरू नानक देव जी, घर से निकलकर शमशान में आकर बैठ
गये और वहाँ जाकर कहने लगे न कोई हिन्दु है न मुसलमान है। यह बात नगर के काजी के
पास पहुँची तो उसने गाँव के बहुत से लागों को साथ ले जाकर पूछा तुम यह कैसे कहते
हो। हम तो देखते हैं हिन्दु भी हैं मुसलमान भी हैं। तब गुरू जी ने कहा कि यह केवल
नाम के हिन्दु और मुसलमान हैं परन्तु इस में वह गुण नहीं जो कि एक सच्चे हिन्दु और
मुसलमान में होने चाहिए। यह बात सुनकर काजी शर्मसार हो गया। इसके बाद काजी ने गुरू
जी को कहा कि अगर आप हिन्दु और मुसलमान को एक समझते हो तो चलो आज हमारे साथ नमाज पढ़ो।
गुरू जी काजी के साथ नमाज पढ़ने चल पड़े। इस बात की चर्चा सारे नगर में फैल गई कि गुरू
जी मुसलमान बन गये हैं। जैराम को भी चिन्ता हो गई, पर बेबे नानकी ने कहा कि आप
चिन्ता न करो आप देखना कि मेरा नानक कैसे नवाब और काजी को सीधा मार्ग दिखलाता है।
ऐसा ही हुआ। जब काजी और नवाब के साथ गुरू नानक देव जी नमाज पढ़ने के लिए मस्जिद में
खड़े हुए तो काजी और नवाब नमाज पढ़ते गये पर गुरू जी यूँ ही खड़े रहे। नमाज पूर्ण होने
के बाद काजी ने बड़े गुस्से में आकर गुरू जी को समाज के सामने पूछा– आपने नमाज क्यों
अदा नहीं की। आपने नमाज की बेइज्जती की है। इसलिए आप सजा के पात्र हैं। गुरू जी ने
उत्तर दिया– हम नमाज किसके साथ पढ़ते, नवाब साहिब जी अपने मन में काबूल में जाकर घोड़े
खरीद रहे थे और आप अपने मन में आपके घर में जो घोड़ी ब्याही है, उसके बछड़े की सँभाल
कर रहे थे। गुरू जी की यह बात सुनकर नवाब ने काजी के साथ सही बात समझ ली और गुरू जी
को एक ऊँचा फकीर समझकर काजी और नबाव ने गुरू नानक देव जी के चरणों में प्रणाम किया।