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81. मोदीखाने का कार्य

(परमात्मा के भक्त तो हर समय, हर स्थान पर और हर प्रकार का कार्य करते समय नाम ही जपते रहते हैं, क्योंकि परमात्मा तो सरब व्यापक है।)

कपूरथले के नजदीक बेईं नदी के किनारे एक सुल्तानपुर नाम का शहर था। जिसका नवाब एक मुस्लमान लोधी था। वहाँ ही आपका बहनोई रहता था। आपकी बड़ी बहन जिसका नाम नानकी था, वह वहाँ अपने पति जैराम के पास रहती थी। जैराम बहुत बड़े शरीफ होने से उनका वहाँ के नवाब के साथ बहुत मेल जोल हो गया था। इधर गुरू जी यहाँ तलवंडी में (जिसका नाम बाद में ननकाना साहिब हुआ) अपने माता पिता के पास बहुत उदास रहते थे जिससे जैराम दास सुलतानपुर में ही ले गये। गुरू जी का सुल्तानपुर में जाने का यह भी कारण था कि बेबे नानकी का अपने भाई क साथ अटूट प्यार था, केवल प्यार नहीं था बल्कि वह अपने भाई को साक्षात भगवान का रूप मानती थी। सुल्तानपुर में गुरू जी को जब कुछ देर रहते हुए हो गई तो जैराम जी ने आपको नवाब के यहाँ मोदीखाने की नौकरी दिला दी। मोदीखाने का काम बहुत जिम्मेदारी का काम था। जिसके लिये बहुत बड़ी जमानत देनी पड़ती थी जोकि जैराम जी ने यह जमानत दे दी थी। मोदीखाने के काम को गुरू जी ने अजब ढँग से चलाया। आपको जब किसी को आटा या गेहूं की सौ दो सौ धारन तौल कर देनी होती तो एक, दो, तीन, चार, आदि तोलते हुए बारह से आगे जब तेरह तक पहुँचते तो वहीं रूक जाते, धारन तो चाहे दो तीन सौ या पाँच सौ रूपये तक तुल जाती परन्तु आपकी जुबान पर तेरा तेरा (यानि हे भगवान् में तेरा हूँ, तेरा हूँ) रहता। सुबह से शाम तक जिस प्रकार का कोई सौदा माँगता आप देते चले जाते। गेहूँ, आटा, दाल, घी आदि जितना कोई माँगता दे देते और अपने पास उसका कोई हिसाब किताब नहीं रखते थे। आपकी यश-शोभा दूर दूर तक फैल गई। दुकान के आगे सुबह से शाम तक भिखारियों की भीड़ लगी रहती। इस प्रकार जहाँ–तहाँ आपकी चर्चा फैलने लगी। नाना प्रकार की बातें उड़ने लगीं। दूती लोग तो यहाँ तक कहने लगे कि यह मोदीखाने को उजाड़कर कहीं भाग जायेगा या दरिया में डूब जायेगा और सारी विपदा जैराम के गले में पड़ जायेगी। जैराम को लोगों की बातें सुन-सुन कर बहुत चिन्ता होने लगी। उधर नवाब के पास भी किसी ने चूगली कर दी कि नानक उसका मोदी खाना उजाड़ का भागने ही वाला है। परन्तु इसमें एक बेबे नानकी का ही विश्वास अटल रहा।
आखिर मोदीखाने का हिसाब करने के लिये नवाब ने जैराम को बुलवा भेजा और हिसाब होने लगा। कहते हैं कि तीन दिन तक हिसाब होता रहा क्योंकि हिसाब बहुत बड़ा हुआ था, तीन चार बार हिसाब किया तो भी गुरू जी का चार पांच सौ रूपया बढ़ता ही रहा जिससे दूती लोग शर्मसार होकर चले गये और गुरू जी की महिमा बढ़ गई। आप पहले से भी ज्यादा गरीबों को सौदा रसद वगैरा बाँटने लगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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