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46. सज्जण ठग

(लोगों को ठगने वाले का कभी भी भला नहीं हो सकता। एक ठग आध्यात्मिक दुनियाँ में सब कुछ हार जाता है।)

श्री गुरू नानक देव जी अपने माता-पिता जी से आज्ञा लेकर अपने प्रिय मित्र भाई मरदाना जी के साथ पश्चिम क्षेत्र की यात्रा पर निकल पड़े। आपका लक्ष्य इस बार मुसलमानी धार्मिक स्थलों का भ्रमण करना था। इस कार्य के लिए आपने मुल्तान नगर की तरफ यात्रा आरम्भ कर दी क्योंकि वहाँ बहुत अधिक सँख्या में पीर फ़कीर निवास करते थे। रास्ते में तुलम्बा नामक कस्बा था। वहाँ से गुजरते समय आपको कज्जण शाह नामक एक युवक मिला जो कि बहुत ही प्रभावशाली व्यक्तित्व का स्वामी था। जब उसने गुरुदेव के चेहरे की आभा देखी तो वह विचारन करने लगा कि वह व्यक्ति अवश्य ही धनी पुरुष है क्योंकि उस के साथ नौकर भी है। उसने गुरुदेव के समक्ष अपनी सराय का बखान किया और कहा, आप विश्राम के लिए रात्रि भर हमारे यहाँ ठहर सकते हैं। आपको प्रत्येक सुख-सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। इसी प्रकार वह अन्य यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करने के उद्देश्य से सुख-सुविधा का आश्वासन दे रहा था। यह बात सुनकर भाई मरदाना जी ने गुरुदेव की तरफ देखा, गुरुदेव ने भाई जी से कहा, आज इसी कज्जण शाह की सराय में ठहर जाते हैं। परन्तु इस बात पर भाई मरदाना जी को आश्चर्य हुआ क्योंकि गुरुदेव कभी भी किसी सराय इत्यादि का आश्रय नहीं ढूंढ़ते थे। भाई जी ने गुरुदेव पर प्रश्न किया, आप तो रात्रि सदैव उद्यान में ही व्यतीत कर देते हैं। आज इस सराय का आश्रय किसलिए ? गुरुदेव ने तब उत्तर दिया, सराय में आज हमारी आवश्यकता है क्योंकि जिस कार्य के लिए हम घर से चले हैं वह वहीं पूरा होगा। भाई मरदाना जी इस रहस्य को जानने के लिए युवक कज्जण शाह के पीछे-पीछे उस की सराय में पहुँचे। सराय के मुख्य द्वार पर कज्जण का चाचा सज्जन शाह यात्रियों का स्वागत करने के लिए तत्पर खड़ा मिला। गुरुदेव तथा भाई मरदाना जी का उसने भव्य स्वागत किया और उनके विश्राम के लिए एक कमरा सजा दिया तथा आग्रह करने लगा, आप स्नान आदि से निवृत होकर भोजन करें। परन्तु गुरुदेव ने उत्तर दिया, अभी उन्हें भूख नहीं। और मरदाना जी को कीर्तन आरम्भ करने का आदेश दिया। कीर्तन प्रारम्भ होने पर गुरुदेव ने शब्द उच्चारण किया– 

उजलु कैहा चिलकणा घोटिम कालड़ी मसु ।।
धोतिआ जूठि न उतरै जे सउ धोवा तिसु ।।
सजण सेई नालि मैं चलदिआं नालि चलंनि ।।
जिथै लेखा मंगीए तिथै खड़े दिसंनि ।। राग सूही, अंग 729 

इसका अर्थ नीचे है
सज्जन शाह यात्रियों की बहुत आवभगत किया करता था। और उनको सेवाभाव के धोखे में रखकर मार डालता था और उनको लूट लेता था। गुरुदेव ने उसके इस छल कपट को जान लिया था। अतः उन्होंने इस जालसाज का ढोंग जनता के सामने लाना था या उसको मानव कल्याण के कार्य के लिए प्रेरित करना था। सज्जन तथा कज्जन ने अनुमान लगाया कि गुरू जी की पोटली में पर्याप्त धन है। जब रात गहरी हुई और सब लोग सो गए। गुरुदेव तब अपने मधुर कीर्तन में ही व्यस्त रहे। सज्जन उनके सोने की प्रतीक्षा करने लगा और उनके बगल वाले कमरे में धैर्य से कीर्तन श्रवण करने लगा। मधुर सँगीत तथा शब्द के जादू ने उसे वहीं पर पत्थर से मोम कर दिया। वह बाणी के भावार्थ की और ध्यान देने लगा। (उपरोक्त बाणी का अर्थ) गुरुदेव कह रहे थे कि उज्ज्वल तथा चमकीले वस्त्र धारण करने मात्र से क्या होगा ? यदि हृदय आमावस की रात के अंधेरे की तरह काला है और काँसे के बरतन की तरह चमकने से क्या होगा, जिसे स्पर्श करते ही हाथ मलीन हो जाते हैं। वह उस मकान के समान है जो बाहर से अत्यन्त सज्जित हो परन्तु भीतर खाली और डरावना हो। उसके भीतर अन्धकार ही अन्धकार है। जो बगुले की भाँति बाहर से श्वेत, विनम्र व साधु रूप धारण किए है, परन्तु निर्दोष जीवों को तड़पा-तड़पाकर मारकर खा जाता है। यह सुनते ही उसके परिपक्व पाप उसने सामने प्रकट हो गये। वह घबराकर गुरुदेव के चरणों में आ गिरा और क्षमा याचना करने लगा। गुरुदेव ने उसे गले लगाया और कहा, तुम्हें अपने कुकर्मों के लिए प्रायश्चित करना होगा। आज से तुम दीन-दुखियों की सेवा में लीन हो जाओ तथा वास्तव में सज्जन बनकर जनसाधारण की सेवा करो। गुरुदेव ने उससे भविष्य में सत्यमार्ग पर चलने का वचन लिया। सज्जन जो वास्तव में ठग था, सचमुच में सज्जन पुरुष बन गया और गुरुदेव की शिक्षा के अनुसार जीवन बिताने लगा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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