43. सम्राट इब्राहीम
(परमात्मा के मारे को भक्त जिन्दा कर सकता है, परन्तु भक्तों
द्वारा मारे गए को तो परमात्मा भी जिन्दा नहीं कर सकता।)
मजनूँ के टिल्लों पर ठहरे गुरूजी और मरदाना सुबह शाम कीर्तन किया
करते और यमुना के तट पर आने वाले लोग भी कीर्तन श्रवण करने बैठ जाते। जिससे गुरुदेव
की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। सतसँग होने लगे, गुरुदेव प्रवचन करते, जनसाधारण
अपनी-अपनी शँकाओं का समाधान पाकर संतुष्ट होकर लौटते जाते। एक दिन कीर्तन के समय
ऊँचे स्वर में रूदन की आवाज आने लगी। कीर्तन में बाधा पड़ने के कारण गुरुदेव ने रूदन
का कारण जानना चाहा, तो ज्ञात हुआ कि सम्राट का हाथी अकस्मात मर गया है। इसलिए
महावत तथा उसका परिवार सम्राट के क्रोध के भय से रो रहे हैं। गुरुदेव ने जब यह बात
जानी तो मरे हाथी को देखने स्वयँ चले गये। गर्मी के कारण हाथी अचेत हो गया था।
गुरुदेव ने हाथी को देखकर महावत का धैर्य बँधाया तथा कहा करतार भली करेगा। जाओ प्रभु
का नाम लेकर इस हाथी पर जल के छींटे दो। भगवान ने चाहा तो यह हाथी उठ बैठेगा। महावत
ने गुरुदेव की आज्ञा मानकर जल तुरन्त गुरुदेव को ला दिया। गुरुदेव ने
सतकरतार-सतकरतार कहकर हाथी पर महावत से जल के छीटे लगवाए, हाथी उठ बैठा। यह घटना
जँगल की आग की तरह समस्त दिल्ली नगर में फैल गई। सम्राट इब्राहीम लोधी पुनः जीवित
हाथी को देखने आया। तथा गुरुदेव से कहने लगा– यह हाथी आपने जीवित किया है ?
इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा– वह "अल्लाह ही स्वयँ" ही समस्त प्राणियों को जीवन
देने वाला अथवा मारने वाला है। दवा फ़कीर की, रहम अल्लाह का–
मारै जीवाले सोई, नानक एकस बिन अवर ना कोई ।।
किन्तु इस उत्तर से सम्राट संतुष्ट नही हुआ, वह तर्क करने लगा
तथा कहने लगा– ऐ फ़कीर मैं दवा की तासीर तब जानूँगा, जब आप खुदा से फिर दुआ माँगे कि
यह हाथी फिर से मर जाए। सम्राट की इच्छा अनुसार वहाँ पर खड़े सभी लोगों ने गुरुदेव
के साथ, प्रभु चरणों में प्रार्थना की, कि हाथी मर ही जाना चाहिए। प्रार्थना समाप्त
होते ही हाथी जमीन पर ढेर हो गया। यह देखकर सम्राट बहुत प्रसन्न हुआ तथा गुरुदेव से
कहने लगा– ठीक है फ़कीरों की दुआ में तासीर है। मैं मानने लगा हूँ। परन्तु आप मेरा
हाथी पुनः जीवित कर दें। गुरुदेव ने कहा– यह कोई "मदारी का खेल नहीं", अब यह हाथी
कभी भी जीवित नही हो सकता। सम्राट ने पूछा– क्यों ? क्या अब दुआ काम नहीं करेगी।
इसके उत्तर में गुरुदेव ने कहा– अल्लाह के मारे को तो, भक्तजन जीवत करवा सकते हैं।
परन्तु भक्तजनों के मारे को, अल्लाह जीवित नहीं कर सकता। सम्राट ने पूछा– इस का
अर्थ क्या हुआ ? गुरुदेव ने कहा– अल्लाह अपने भक्तों की सदैव लाज रखता है। अल्लाह
के बाँधे हुए को भक्तगण प्रार्थना से छुड़वा सकते हैं। किन्तु जिसको भक्तों ने बाँध
दिया, उसे प्रभु नहीं छोड़ता। सम्राट प्रसन्न होकर कहने लगा– आप मुझे कोई सेवा का
अवसर दें। आपको धन चाहिए तो बताएँ। गुरुदेव ने कहा– हमारी माँग केवल प्रभु दर्शनों
की है। इसके अतिरिक्त और कोई तृष्णा नहीं। बस हमारी फ़कीरी ही हमारा अपार धन है।
इस घटना के पश्चात, गुरुदेव के दर्शनों के लिए जनसाधारण उपहार
लेकर आने लगा। जिससे बहुत धन इकट्ठा हो गया। उस धन से गुरुदेव ने दिल्ली में एक
स्थान पर पानी की कमी से पीड़ित जनता के लिए एक कुँआ बनवा दिया। जिसे आज भी लोग नानक
प्याऊ के नाम से जानते हैं।