41. जनेऊ सँस्कार
(अगर कोई सँस्कार या धार्मिक कार्य आदमी और औरत दोनों को समानता
का अधिकार नहीं देता तो ऐसे सँस्कार को तुरन्त बन्द ही कर देना चाहिए। जनेऊ एक ऐसा
सँस्कार है जो केवल आदमी की ग्रहण करता है, औरत नहीं, इसलिए गुरू नानक देव जी ने इसे
धारण करने से इन्कार कर दिया। कबीर जी ने भी सुन्नत नहीं करवाई थी, क्योंकि सुन्नत
केवल आदमी की होती है, औरत की सुन्नत तो हो ही नहीं सकती।)
जब नानक जी दस वर्ष की आयु के हुए तो पिता कालू जी ने कुल-रीति
के अनुसार जनेऊ धारण की रस्म के लिए एक समारोह आयोजित किया। जिसमें कुल पुरोहित
पण्डित हरिदयाल जी को इस कार्य के लिए आमंत्रित किया। जनेऊ की सभी शास्त्रीय विधियों
को पूरा करने के बाद पुरोहित जी, नानक जी को जनेऊ पहनाने के लिए जब आगे बढ़े तो बालक
नानक जी ने उनका हाथ पकड़ लिया। तथा पूछा– पंडित जी ! आप मुझे जो यह जनेऊ धारण करवाने
जा रहे हैं उसका मुझे क्या लाभ होगा ? तब पण्डित जी के आश्चर्य का ठिकाना न रहा,
क्योंकि आज तक उन से किसी ने भी ऐसे प्रश्न किए ही नहीं थे। अतः पण्डित जी ने
शास्त्रों के अनुसार जनेऊ के लाभों की व्याख्या प्रारम्भ कर दी कि यह धागा नहीं
बल्कि पवित्र जनेऊ है। यह उच्च जाति के हिन्दुओं की निशानी है। इसके बगैर व्यक्ति
शूद्र के समान है। यदि आप जनेऊ धारण कर लेगें तो आप पवित्र हो जायेंगे। यह जनेऊ अगले
संसार में भी आप की सहायता करेगा। परन्तु नानक जी इस उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए और
कहने लगे– पंडित जी आपने जनेऊ के बहुत गुण बताए हैं। परन्तु, मुझे इस में शँका है।
पंडित जी– पूछो बेटा तुम्हें क्या शँका है ? नानक जी ने कहा– मेरे विचार में तो यह
जनेऊ मनुष्य–मनुष्य में विभाजन करके मतभेद पैदा करता है तथा वर्गीकरण करके बिना किसी
वास्तविक आधार के किसी को नीच किसी को श्रेष्ठ दर्शाने का असफल प्रयास करता है। बात
यहाँ तक सीमित नहीं, यह भाई-बहन के बीच में दीवार खड़ी करता है, क्योंकि नारी को
जनेऊ का अधिकार न देकर उसे पुरुष की समानता के अधिकार से वंचित करता है। आपने कहा
है कि यह धागा उच्च जाति की निशानी है। परन्तु मेरी दृष्टि में उच्च जाति वाला तो
वह है जिसने उच्च एवं नेक कार्य किए हों। पवित्र वह है जिस के कार्य पवित्र हैं।
नीच वह है जिसके कार्य नीच एँव बुरे हैं। साथ ही यह धागा तो कच्चा है, यह मैला भी
हो जाएगा। इस के पश्चात् नया धागा डालना पड़ेगा। इस धागे ने किसी को क्या सम्मान देना
है ? वास्तविक सम्मान तो नेक जीवन व्यतीत करने से ही प्राप्त हो सकता है। साथ ही आप
कहतें हैं कि यह धागा मनुष्य के अगले जन्म में सहायता करता है। तो वह कैसे ? यह धागा
तो शरीर के साथ यहीं, इसी सँसार में रह जायेगा। इसने आत्मा के साथ नहीं जाना। जब
अँतिम समय शरीर जलेगा तो यह धागा भी उसके साथ ही जल जाएगा। इसलिए आप मुझे ऐसा धागा
डालें जो हर समय मेरे साथ रहे। मुझे बुरे कार्य करने से रोके तथा नेक कार्य करने के
लिए प्रेरणा दे। जो अगले सँसार में भी मेरी सहायता करे। यदि ऐसा जनेऊ आपके पास है
तो आप वह मेरे गले में डाल दें। पण्डित जी ने बहुत शान्त भाव से कहा– बेटा नानक,
अच्छा तो तुम ही हमें बताओ कि हमें कौन सा जनेऊ धारण करना चाहिये ? तब नानक जी कहने
लगे– सबसे पहले दया की कपास बनाओ उससे सन्तोष रूपी सूत बने और सत्य का उसे वट लगायें
तथा जति-पन की गाँठ लगावें। ऐसा जनेऊ जिस में दया, सत्य आदि कर्म हो, वह गले में
पहनें। अगर कोई पुरुष इस प्रकार का जनेऊ धारण कर लेता है तो वह मेरी दृष्टि में
धन्य है। यह सुनकर किसी ने जोर जबरदस्ती करने की कोशिश नहीं की। उपरोक्त शब्द बाणी
में–
दइआ कपाह संतोखु सूतु जतु गंढी सतु वटु ।।
एहु जनेऊ जीअ का हई त पांडे घतु ।।
ना एहु तुटै न मलु लगै न एहु जलै न जाइ ।।
धंनु सु माणस नानका जो गलि चले पाइ ।। रागु आसा, पृष्ठ 471