40. केश अनिवार्य क्यों
(गुरू का सिक्ख होने की सबसे पहली शर्त यह है कि केश अनिवार्य
हैं।)
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी अवकाश के समय आगरे के दर्शनीय स्थलों
इत्यादि पर विचरण कर रहे थे कि एक दिन कुछ स्थानीय सिक्ख एकत्रित होकर आपके दर्शनों
के लिए आये। गुरू जी उनकी श्रद्धा पर सन्तुष्ट हुए और उन्होंने समस्त सिक्खों को
अमृतपान करने की प्रेरणा दी। इस पर अधिकाँश अमृतपान करने के लिए उत्सुक दिखाई दिये
किन्तु एक व्यक्ति जिसका नाम नो निद्धि राय था, गुरू जी के समक्ष उसने अपनी जिज्ञासा रखी। और प्रश्न किया– हे गुरू जी ! आप जो अमृतपान करवाते समय केश अनिवार्य बतलाते
हैं, वह क्यों ? क्या सिक्खी हम पहले की तरह धारण नहीं कर सकते ? गुरू जी इस प्रश्न
पर प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा– कि नो निद्धि राय तुम विवेकशील व्यक्ति हो। अतः
तुम्हारा प्रश्न उचित है। यदि मन में शँका बनी रही तो दुविधा में किया गया कर्म
फलीभूत नहीं होता, अतः हम तुम्हे प्रश्न का उत्तर देते हैं। केश सभी मनुष्यों को
जन्म से ही उपहार में प्रकृति ने दिये हैं। हमारी प्राचीन सभ्यता में सभी स्त्री
पुरूष ज्यों का त्यों उन्हें धारण करते थे। समय के अन्तराल में कुछ लोगों ने केशों
का खण्डन करना प्रारम्भ कर दिया यह कुरीति विकराल का रूप धारण कर गई। बस केवल ऋषि
मुनि अथवा संत जन की केशधारी शेष रह गये। बात समझने की है, हमने कोई नई नीति नहीं
चलाई बल्कि प्राचीन परम्परा को सुरजीत किया है और हमने प्रकृति के नियमों का अनुसरण
करके उस प्रभु के आदेश का पालन किया है, जिसने मानव शरीर में केश एक अनिवार्य अँग
के रूप में हमें प्रदान किये हैं। अब हमारा प्रश्न है कि जब प्रकृति ने हमें उपहार
में केश दिये हैं तो उसमें कोई रहस्य अवश्य ही होगा। लोग प्रकृति के नियमों के
विपरीत केशों का खण्डन क्यों करते हैं ? इस पर नो निद्धि राय बोला– कि गुरू जी !
मैं आपकी बात को समझ गया हूं परन्तु केश, दाड़ी मूँछे आदि का महत्व बताएँ। उत्तर में
गुरू जी ने कहा– केश सुन्दरता का प्रतीक है और मनुष्य के मस्तिष्क को सुरक्षित रखते
हैं। दाड़ी, दैवी गुणों की प्रतीक है, जैसे– दया, धैर्य, क्षमा, शान्ति, सन्तोष आदि।
इसी प्रकार मूँछे वीरता, शौर्य जैसे गुणों की प्रतीक है। यदि पुरूष इन प्रकृति के
उपहारों को ज्यों का त्यों रहने धारण करे तो वह अति सुन्दर प्रतीत होता है। नारी को
तो कृत्रिम श्रँगार की आवश्यकता है किन्तु पुरूषों को प्रकृति ने केश, दाड़ी तथा
मूँछे उपहार रूप में प्रदान करके अपने हाथों से श्रँगारा है। इसलिए सौन्दर्य की
दृष्टि से पुरूष नारी की अपेक्षा अधिक सुन्दर है। यह व्याख्या सुनकर नो निद्धि राय
तथा संगत ने गुरू जी को नमस्कार किया और अमृतपान करने के लिए तत्पर हो गये।