12. सुलक्षणी देवी की मनोकामना फलीभूत
(गुरू, परमात्मा के भक्त और महापुरूषों के मुख से बोले गए बचन
हमेशा सत्य ही होते है। गुरूबाणी में लिखा है: नानक दास मुख ते जो बोले ईहां ऊहां
सच होवै ।।)
पँजाब का एक ग्राम जिसका नाम चब्बा था, वहाँ एक महिला के कोई
सन्तान नहीं हुई। उसने इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए बहुत से उपचार किये और अनेक
धार्मिक स्थलों पर सन्तान प्राप्ति के लिए प्रार्थनाएँ भी की। अनेकों आध्यात्मिक
पुरूषों के पास अपनी याचना लेकर पहुँची किन्तु उत्तर मिला कि माता तेरे भाग्य में
सन्तान सुख नहीं लिखा, अतः आप सँतोष करें। किन्तु महिला के दिल में धैर्य कहाँ। वह
सदैव चिन्तित रहने लगी। घीरे-धीरे उसकी आयु भी प्रोढ़ावस्था के निकट पहुँचने लगी। एक
दिन उसकी एक सिक्ख से भेंट हुई। उसने उस महिला से कहा– आप श्री गुरू नानक देव जी के
उत्तराधिकारी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी से प्रार्थना करो। इस महिला का नाम
सुलक्षणी था। एक दिन उसे मालूम हुआ कि श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी चब्बे ग्राम के
निकट जँगलों में शिकार खेलने आए हुए हैं, वह तुरन्त उनका रास्ता रोक कर खड़ी हो गई।
गुरू जी के पूछने पर कि आपको क्या चाहिए ? तो सुलक्ष्णी ने बहुत आत्मविश्वास के साथ
याचना की– हे "गुरू नानक" के उत्तराधिकारी मेरी कोख हरी होनी चाहिए, नहीं तो मैं इस
सँसार से नपूती ही चली जाऊँगी। गुरू जी ने उसे ध्यान से देखकर कहा– माता तेरे भाग्य
में सन्तान सुख नहीं लिखा। इस पर सुलक्ष्णी ने तुरन्त कलम दवात तथा कागज आगे
प्रस्तुत कर दिया और कहा– हे गुरू जी ! आप और प्रभु में कोई अन्तर नहीं है। यदि मेरे
भाग्य में पहले नहीं लिखा तो कोई बात नहीं, आप कृपा करें और अब लिख दें। इस
निर्धारित युक्ति को देखकर गुरू जी मुस्कराए और उन्होंने माता जी से कागज लेकर उस
पर 1 (एक) लिखना प्रारम्भ ही किया था कि उनके घोड़े ने टाँग हिला दी, जिससे गुरू जी
की कलम हिलने से एक का 7 (सात) अंक बन गया। उसे गुरूदेव ने कहा– लो माता तुम पुत्र
चाहती थी किन्तु विधाता को कुछ और ही मन्जूर है अब तुम्हारे यहाँ सात पुत्र जन्म
लेंगे। गुरू जी का वचन पूर्ण हुआ। कुछ समय पश्चात माता सुलक्षणी के यहाँ क्रमशः सात
पुत्र हुए जो गुरू नानक देव जी के पंथ पर अपार श्रद्धा भक्ति रखते थे।