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8. घुड़ाम पर विजय

बंदा सिंह अपने सैनिकों को प्रसन्न रखने का हर प्रयास करता था। उसकी उदारता से सभी सन्तुष्ट थे। उसे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए था, वह सारा ध्यान लोक भलाई के कार्य पर केन्द्रित रखना चाहता था। इसलिए स्थानीय जनता बहुत खुश थी। बड़े-बड़े जमींदारों के सताए हुए मज़दूर व किसान सिक्खों की दरियादिली से प्रभावित होकर सिक्खों के पक्षधर बन गए। जैसे ही सिक्खों ने अपने उज्जवल आचरण से स्थानीय जनता का मन जीता। जनसाधारण में मुग़लों की गुलामी से स्वतन्त्रता की लहर दौड़ गई। सभी बंदा सिंह को अपना प्रतिनिधि मानने लगे और उसे सभी प्रकार की अपनी-अपनी सेवाएँ अर्पित करने लगे। अब जत्थेदार बंदा सिंह बिना समय नष्ट किए सरहिन्द के सभी परगनों को एक-एक करके विजय करने का कार्यक्रम लेकर चल पडा। उन दिनों घुड़ाम नामक कस्बा एक छावनी थी। सरहिन्द को विजय करने से पहले ऐसे महत्वपूर्ण स्थानों को अपने नियन्त्रण में लेना अति आवश्यक था। अतः खालसा दल ने घुड़ाम को घेर लिया। घुड़ाम का फौजदार पराजय मानने वालों में से नहीं था, उसने चुनौती को स्वीकार किया और भयँकर युद्ध हुआ। दोनो पक्षों को भारी क्षती उठानी पड़ी किन्तु बंदा सिंह के विशाल सैन्यबल के सामने एक घड़ी भी टिक न सके और भाग निकले। दल खालसा ने उनकी खूब धुनाई की।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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