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39. दल खालसा का लोहगढ़ व सढौरा किलों पर पुनः नियन्त्रण

जम्मू क्षेत्र में शाही लश्कर से घमासान युद्ध में दल खालसे को भी भारी क्षति उठानी पड़ी थी। अतः जत्थेदार बंदा सिंह ने पुनः रणनीति का निर्धारण करने के लिए पँचायत बुलाई। निर्णय यह हुआ कि बादशाह के निकट होने के कारण हमारी शक्ति कम हो जाती है। क्योंकि स्थानीय प्रशासकों को शाही लश्कर से तुरन्त सैनिक सहायता पहुँच जाती है। यदि हम पुनः उत्थान चाहते हैं तो हमें अपने खोए हुए क्षेत्रों पर पुनः कब्जा कर लेना चाहिए क्योकि इस समय बादशाह लाहौर में बीमार पड़ा हुआ है तथा उसकी मानसिक स्थिति भी बिगड़ी हुई है। निर्णय उचित था अतः दल खालसा पर्वतों की तलहटी के मार्गो से होता हुआ श्री कीरतपुर साहिब जी पहुँचा, वहाँ से योजना अनुसार सढौरा क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। सढौरा किले अथवा नगर में दल खालसा की पहले से ही धाक थी और वहाँ कोई विशेष सैनिक दस्ता भी न था जो दल खालसा का सामना कर सके। अतः थोड़े से प्रयत्न के पश्चात् ही नगर और किले दोनों सिक्खों के हाथ आ गए। ठीक इसी प्रकार अगली कार्रवाई में लोहगढ़ किले को पुनः प्राप्त कर लिया गया। जैसे ही खालसा का पुनः इन स्थानों पर कब्जा हुआ आसपास के क्षेत्रों में सिक्खों को फिर से अपनी गतिविधि बढ़ाने का शुभ अवसर प्राप्त हो गया। उन्होंने सर्वप्रथम किलों की मरम्मत की और उनमें खाद्यान व शस्त्रों अस्त्रों का भण्डार बनाना प्रारम्भ कर दिया। नये सैनिकों की भर्ती भी उन्हें मिलने लगी।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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