12. सढौरा नगर
दल खालसे का अगला लक्ष्य सढौरा नगर था। यहाँ के हाकिम उस्मान खान ने पीर बुद्धु शाह
जी, सैयद बदरूद्दीन की हत्या करवा दी थी क्योंकि पीर जी ने भँगाणी क्षेत्र के युद्ध
में साहिब श्री गुरू गोबिंद सिंह साहिब जी का पक्ष लिया था। इस युद्ध में पीर जी
अपने चार पुत्रों, दो भाईयों व 700 मुरीदों के साथ भाग लेने पहुँचे थे। उनके दो
पुत्र व एक भाई रण क्षेत्र मे काम आए थे। यह युद्ध हिन्दू पर्वतीय नरेशों के संग
हुआ था। दल खालसा भला अपने गुरूदेव के हित में जूझने वाले के उपकारों को कैसे भूल
सकते थे। अतः दल खालसा सढौरा नगर पर आक्रमणकारी हो गया। बंदा सिंह को सूचित किया गया
कि यहाँ का हाकिम उस्मान खान बहुत मुतस्बी, कटटरपँथी है, वह हिन्दू जनता का दमन करता
रहता है और कई प्रकार से परेशान करता रहता है। दल खालसे का उद्देश्य तो दुष्टों का
दमन करना ही था। अतः बंदा सिंह जी ने सढौरा नगर विजय करने का कार्यक्रम बनाया। इस
समय दल खालसा बहुत मज़बूत स्थिति में था। उनकी अपनी सँख्या चालिस हज़ार के लगभग पहुँच
चुकी थी, फिर भी उन्होंने शत्रु को कमजोर नहीं समझा। इसलिए पीर बुद्धु शाह के
उत्तराधिकारी को सँदेश भेजा कि वह दल खालसा की सहायता और मार्गदर्शन के लिए तैयार
रहे। जैसे ही दल खालसा सढौरा नगर के निकट पहुँचा। शत्रु ने नगर के दरवाजे बन्द कर
लिए और उनके उपर से तोपों से दल खालसे पर गोले दागनें शुरू कर दिये। भयँकर परिस्थिति
थी। परन्तु दल खालसा शहीदी पोशाक पहिनकर आया था। उन्होंने कुर्बानियाँ देते हुए नगर
का दरवाजा तोड़ डाला और नगर के अन्दर घुसने में सफल हो गए। अन्दर सैनिक तैयारियाँ
बहुत बडे पैमाने पर थीं। अतः भँयकर युद्ध हुआ किन्तु पीर जी के मुरीदों की सहायता
मिल गई फिर क्या था, कुछ ही घण्टों के भीतर ही सढौरा नगर पर खालसे का नियँत्रण हो
गया।
किन्तु उस्मान खान किले के भीतर आकी होकर बैठ गया। किला फतेह
करना कोई सरल कार्य न था किन्तु दल खालसा ने अपनी सँख्या के बल पर और युद्ध नीति के
अन्तरगत पीर बुद्धु शाह के मुरीदों की सहायता प्राप्त करके यह कठिनाई भी हल कर ली
और किले का दरवाजा अन्दर से खुलवाकर उस्मान खान को पकड़कर मृत्यु दण्ड दे दिया। बाकी
सभी अमीर, चौधरी, वजीर तथा नवाब मुँह में घास लेकर सफेद झण्डा लहराने लगे। वे बंदा
सिंह की कमजोरी जानते थे। उन्होने बंदा सिंह से क्षमा याचना करते हुए कहा कि हम आपकी
गाय हैं, इस बार बख्श दें। बंदा सिंह रक्तपात तो चाहता नही था, अतः बंदा सिंह ने
उन्हें पुनः गद्दारी न करने की शपथ लेकर क्षमा कर दिया। इस विजय से जहाँ लाखों की
नगद सम्पति दल खालसा के हाथ लगी। वहाँ उसकी धाक पूरे पँजाब क्षेत्र मे बैठ गई। बंदा
सिंह अभी सढौरे नगर की प्रशासनिक व्यवस्था से उल्झा ही हुआ था कि एक अद्भुत घटना घटी।
एक स्थान पर दल खालसा के जवान अपने ऊँट और घोड़े चरा रहे थे कि एक ऊँट भागकर एक खेत
मे घुस गया। उस जवान ने ऊँट को पीटकर वापिस लाने के लिए एक राही से बाँस छीनकर ऊँट
को पीटा। बाँस खोखला था, टूट गया। परन्तु यह क्या ? उसमें से एक पत्र नीचे गिर पड़ा।
जवान ने वह पत्र पढ़ा और उस राही को जो भाग रहा था, पकड़ लिया और जत्थेदार बंदा सिंघ
के समक्ष पेश किया। पत्र की इबारत में सरहिन्द के सुबेदार को लिखा गया था कि वह
सरहिन्द से सढौरें नगर पर आक्रमण कर दे, इस बीच हम बंदा सिंह को बहला फुसला रखेगें
जैसे ही बाहरी आक्रमण हुआ। हम नगर के अन्दर बगावत कर देंगे। इस प्रकार बंदा सिंह और
उसका दल युक्ति से घेरे में फँस सकता है। इस पत्र को पढ़कर बंदा सिंह ने उन सभी लोगों
की सभा बुलाई जिनको सढौरे के किले में से पकड़ लिया गया था और जिन्हें क्षमा याचना
माँगने पर जीवनदान दिया गया था।
इन लोगों ने छलकपट न करने कि कसम खाई थी। इस सभा को सम्बोधित
करते हुए जत्थेदार बंदा सिंह ने कहा कि आपके विचार में यदि कोई कसम खाकर दगाबाजी करे
तो उस समय उसे क्या दण्ड़ दिया जाना चाहिए। उत्तर में सभी एक मत होकर कह उठे कि
मृत्युदण्ड का अधिकारी है वह। बस फिर क्या था बंदा सिंह ने वह पत्र उस सभा में
प्रदर्शित किया। पत्र को देखकर सभी अमीरों, वजीरों व नवाबों पर वज्रपात हुआ। वे
स्तब्ध रह गए कि यह गुप्त पत्र बंदा सिंह के पास किस प्रकार पहुँचा। अब तो उन्हें
मृत्यु सिर पर मडँराती हुई दिखाई देने लगी। किन्तु वह बहुत चतुर थे, उन्होंने बंदा
सिंह को दण्डवत प्रणाम किए और कहा कि इस बार हमें क्षमा कर दो। उत्तर में बंदा सिंह
ने कह दिया कि तुम से जो व्यक्ति पीर बुद्धु शाह जी की हवेली में शरण ले लेगा उन्हें
क्षमा दान दे दिया जायेगा, बाकियों को मृत्यूदण्ड। इतना सुनना था कि सभी पीर जी की
हवेली में घुसने दौड़े जब पीर जी की हवेली में कोई रिक्त स्थान न रहा तो बंदा सिंह
ने आदेश दिया जो व्यक्ति कमजोर होने के कारण हवेली में पनाह नहीं ले सके, उन्हें
क्षमादान दिया जाता है। और हवेली के अन्दर घुसे लोगों को मृत्युदण्ड। बस फिर क्या
था। आदेश पाते ही दल के जवानों ने हवेली को आग लगा दी। किसी को भी वहाँ से भागने नहीं
दिया और सभी को भस्म कर दिया। इस घटना के पश्चात् 15 नवम्बर 1709 को सढौरा नगर की
प्रशासनिक व्यवस्था के लिए खालसा पँचायत की स्थापना कर दी गई। इसके साथ ही निकट के
जँगलों में से एक लम्बा चीड़ का वृक्ष कटवाकर उस पर खालसे का ध्वज केसरी रँग में लहरा
दिया। अब खालसे दल को अपने लिए कोई सुरक्षित किले की आवश्यकता थी। अतः सढौरा नगर के
सात कोस दूर एक टेकरी पर बने हुए किले को फतेह करने का निश्चय किया गया। इस किले का
नाम मुखलसगढ़ था। इसे किसी पठान ने तैयार करवाया था जो इस समय उसमें फौजदार नियुक्त
था। दल खालसे के पहुँचने पर वह भाग खड़ा हुआ किन्तु पकड़ लिया गया और सदा की नींद
सुला दिया गया। किले पर नियन्त्रण होते ही बंदा सिंह ने किले का नाम बदलकर लोहगढ़ कर
दिया। दल खालसा ने अपना खजाना, रसद, शस्त्र-अस्त्र यहाँ सुरक्षित किए और इस किले को
केन्द्र बनाकर अगामी योजना बनाने लगा।