6. श्री बाउली साहिब जी का प्रारम्भ
श्री गुरू अमरदास जी की कृपा से श्री गोइँदवाल साहिब जी, सिक्खी
का बड़ा भारी केन्द्र बन गया था जिस कारण अब वहाँ पर गुरू जी ने बड़े भारी तीर्थ, श्री
बाउली साहिब की रचना आरँम्भ कर दी। 1616 विक्रमी, सन 1559 को पहला बुनियादी पत्थर
रखा गया। दूर दूर से सिक्ख संगत आकर जमां होने लगी। जिससे बहुत भारी भीड़ होने से
मकानों की कमी हो गई। तब गुरू जी ने सावनमल को कुछ सिक्खों का मुखिया बना कर सकेत
मंडी की तरफ भेजा। सावन मल को गुरू जी ने एक रूमाल दिया और कहा कि यह रूमाल तुम्हें
किसी भारी मुसीबत में काम देगा। सकेत मंडी में पहुँचने पर उस दिन एकादशी का व्रत
होने से राजा का सख्त हुक्म होने से सब लोगों ने व्रत रखा हुआ था, परन्तु सिक्खों
ने व्रत न रखा। इस बात की जब राजा को खबर हुई, तो उसने सिक्खों को जेल में डाल दिया।
व्रत खुलने के समय राजा के बेटे ने बहुत सारे फल खा लिये और वह हैजे से मर गया। जब
ज्योतिषियों से इस घटना का कारण पुछा गया तो उन्होनें कहा कि तुमने गुरू के सिक्खों
को बिना कारण जेल में डाल दिया है यही कारण है। तब राजा ने बड़े सत्कार सहित सिक्खों
को जेल से निकाल कर महलों में लाकर क्षमा मांगी और अपना बेटा जिन्दा करने की बेनती
की। तब सावनमल ने गुरू जी का रूमाल मृत लड़के के नाक पर रखा, वह सतिनाम का जाप करता
हुआ उठकर बैठ गया। इस पर राजा प्रसन्न होकर कहने लगा कि जो चाहे मांगो। सिक्खों ने
कहा गोइंदवाल साहिब में हमारे गुरू जी बड़े भारी तीर्थ की रचना कर रहे हैं। वहां
बहुत सी संगत एकत्रित होने से मकानों की कमी है। राजा ने वहाँ बहुत सी लकडियाँ कटवा
कर ब्यास दरिया में बहा कर श्री गोइंदवाल साहिब में पहुँचा दी और खुद भी गुरू जी के
दर्शनों के लिए आया। बहुत सा धन भेंट करके गुरू का सिक्ख बन गया। इधर बाउली साहिब
का कार्य 6 साल में पूरा हुआ, क्योंकि बाउली साहिब की खुदाई के समय एक बहुत बड़ा
पत्थर आ गया जो बड़ी मुश्किल से टूटा था। उसको तोड़ने में चार साल लग गये। बाउली
साहिब जी की गुरू जी ने 84 सीढ़ियाँ बनवाई और वरदान दिया, कि जो भी श्रद्धा से 84
सीढियों पर 84 बार जपुजी साहिब का पाठ करके स्नान करेगा, उसकी 84 कट जायेगी। हर सीढ़ी
पर एक पाठ।