5. श्री सन्न साहिब जी
श्री गुरू अमरदास जी को गुरू अंगद देव जी ने खडूर साहिब से
गोइंदवाल साहिब भेज दिया ताकि यहाँ पर उन्हीं के पुत्र दातू और दासू ईर्ष्या न करे।
गुरू अमरदास जी ने गोइंदवाल को ही सिक्खी का प्रचार केन्द्र बना लिया। परन्तु गुरू
जी की महिमा बढ़ती देखकर दातू ने गोइंदवाल साहिब आकर गुरू जी की पीठ में उस समय जोर
से लात मारी जब आप सिंहासन पर बैठे संगतों को उपदेश दे रहे थे और कहा इस पद पर हमारा
हक है। गुरू जी ने दातू के पाँव पकड़ कर दबाने शुरू कर दिये और कहा कि आप गुरू अंश
हो, मेरा शरीर बहुत सख्त है, आपके नर्म पांव में चोट तो नहीं लगी। गुरू जी की इस
प्रकार की शान्ति को देखकर दातू जी बहुत शर्मिन्दा हुए। सब संगतों में भी बहुत
गुस्सा था, लेकिन गुरू जी ने सबको रोक दिया कि कोई कुछ न कहे। सबके सब अपनी जगह पर
बैठे रहे। सँसार में यह दूसरी घटना थी। पहले सतयुग में भृगु ने विष्णु जी के पेट पर
लात मारी थी, उन्होंने ने भी ऐसे ही किया था। इस घटना का गुरू अमरदास जी पर बहुत
गहरा प्रभाव पड़ा। वो गुरू पुत्र को निराश नहीं करना चाहते थे। उसी रात अमरदास जी
चुपके से किसी सिक्ख को खबर किये बिना ही चल दिये। चलते–चलते अपने जन्म स्थान बासरके
गाँव पहुँच गये। वहाँ एक कोठे में प्रवेश होकर अंदर से साँकल लगा दिया परन्तु दरवाजे
पर लिख दिया कि जो भी दरवाजा खोलेगा वो गुरू का सिक्ख नहीं। इधर संगतों को पता लगा
कि गुरू जी कहीं चले गये हैं, तो बहुत तलाश करने पर भी पता न चला। तब एक घोड़ी जिस
पर गुरू जी सवारी करते थे, उसे छोड़ दिया और बाबा बुढा जी और सभी सिक्ख उसके पिछे चल
पड़े। घोड़ी चलते–चलते बासरके गॉँव में उसी कोठे पर आकर खड़ी हो गई, जिसके अन्दर गुरू
अमरदास जी मौजूद थे। जब सभी ने वहाँ पहुँचकर दरवाजे पर लिखा गुरू का फरमान पड़ा कि
जो भी दरवाजा खोलेगा वो गुरू का सिक्ख नहीं, तो सब डर गये। तब बाबा बुढा जी ने एक
उपाय निकाला। उन्होंने कोठे के पिछे की तरफ से सन्न (फोड़) लगा दी और संगतों समेत
गुरू अमरदास जी के दर्शन किये। तब गुरू अमरदास जी बाबा बुढा जी से बहुत खुश हुए और
वरदान दिया कि जो कोई भी इस सन्न से गुजरेगा उसकी चौरासी कट जाएगी। गुरू जी संगतों
के साथ श्री गोइँदवाल साहिब जी वापिस आ गए। उन दिनों में गुरू जी की बहुत भारी महिमा
देखकर मरवाहे के बेटे भी जलने लगे और उन्होंने गुरू जी पर दिल्ली दरबार में दावा
किया था, लेकिन बहुत बुरी तरह से हार गये, जिसका वर्णन गुरबाणी में भी आता है।