3. श्री गोइँदवाल साहिब जी बसाना
श्री गुरू अंगद देव जी के दरबार में एक समृद्ध जमींदार गोइन्दा
हाजिर हुआ और उसने गुरू जी के चरणों में प्रार्थना की कि मेरे पास व्यास नदी के तट
के उस पार एक शाही सड़क के दोनों और बहुत भूमि है। मैं उसे कई वर्षों से बसाने का
प्रयत्न कर रहा हूं, परन्तु कभी बाढ़ और कभी सूखा इत्यादि विपदा के कारण बसा नही पाया।
भूमि उपजाऊ है। अतः मेरे चचेरे भाईयों ने उस पर अवैध कब्जा कर लिया था। अब लम्बे
समय के बाद मुकदमेंबाजी के पश्चात उस भूमि का पटटा प्राप्त करने में सफल हो गया
हूं। इन दिनों भी मैंने बहुत प्रयास किये हैं कि नगर बस जाए परन्तु मेरे
प्रतिद्वन्द्वी ईर्ष्यावश दिन का निर्माण कार्य, रात के अन्धकार में विनाश में बदल
देते हैं और श्रमिकों में अफवाह फैला देते हैं कि इस स्थान पर प्रेत आत्माएं रहती
हैं। अतः कई श्रमिक भय के कारण काम छोड़कर भाग जाते हैं। यदि आप मेरी सहायता करें तो
यह स्थान बस जाने से यहा के स्थानीय निवासियों को बहुत लाभ होगा क्योंकि वहां व्यास
नदी के पतन पर यात्रियों का आवागमन सदैव बना रहता है। अतः वहाँ पर एक अच्छा
व्यापारिक केन्द्र बनने की सम्भावना है। भाई गोइन्दे की पवित्र भावना को देखकर गुरू
जी ने अमरदास जी आदेश दियाः कि आप भाई गोइन्दा जी के साथ जाओ और गुरू नानक देव जी
की ओट लेकर नगर की आधारशिला रखो। प्रभु ने चाहा तो सब कार्यों में सिद्धि मिलेगी।
आदेश पाते ही अमरदास जी गोइन्दे की भूमि पर पहुँचे जो कि खडूर नगर से 3 कोस की दूरी
पर व्यास नदी के पश्चिमी तट पर स्थित थी। वहाँ पर पहुंचते ही अमरदास जी ने एक
प्रार्थना समारोह का आयोजन किया, जिसमें विरोधी पक्ष को भी आमन्त्रित किया गया और
नगर की आधारशिला एक श्रमिक से गुरू जी ओट लेकर रखवा दी गई। इस प्रकार निर्माण कार्य
प्रारम्भ कर दिया गया। इस समारोह में विरोधी पक्ष का भी मनमुटाव मिट गया, जिससे
उन्होंने भी सहयोग देना आरम्भ कर दिया। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में एक छोटे से
नगर की रूपरेखा स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगी। नगर के अस्तित्व में आने से भाई गोइन्दा
अति प्रसन्न हुआ। उसने कुछ भूमि गुरू नानक देव जी को शिक्षा के प्रसार के लिए
सुरक्षित रख दी।