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25. श्री गोइँदवाल साहिब जी में बैसाखी पर्व

श्री गोइँदवाल साहिब जी में बाउली के सम्पूर्ण होने पर पेयजल की समस्या का समाधान हो गया तो गुरू जी के समक्ष कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने मिलकर आग्रह किया कि हे गुरूदेव ! क्या अच्छा हो यदि आप एक विशेष सम्मेलन का आयोजन करें जिससे सभी प्रमुख सिक्ख समुदाय यहां पर एकत्र होकर आपस में मिलने का सौभाग्य प्राप्त कर सकेंगे। इनमें से वे सिक्ख जिनको अपना प्रतिनिधि (मँजीदार) नियुक्त किया है, वे भी आपस में मिल सकेंगे तथा उस क्षेत्र की संगत को यहाँ आने का शुभ अवसर प्राप्त होगा। जिससे उनको गुरमति सिद्धान्त दृढ़ करवाने तथा सिक्ख आचार–संहिता को समझने में सहायता मिलेगी। गुरू जी इस प्रस्ताव को सुनकर अति प्रसन्न हुए। उन्होंने कहाः शीत ऋतु समाप्त होने पर बैसाखी पर्व पर यह सम्मेलन निश्चित किया जाए और सभी मँजीदारों तथा पीढ़ेदारों को सम्मेलन में अपने क्षेत्र की संगत के साथ उपस्थित होने का लिखित आदेश भेज दिया जाए। ऐसा ही किया गया और श्री गोइँदवाल साहिब जी में विशाल पँडाल और निवास स्थान तैयार किये जाने लगे। संगतों में बहुत उत्साह था। वह समय से पूर्व ही पहुँचने लगे और चारों और मेले जैसा वातावरण बन गया। संगत की अधिकता के कारण केन्द्रीय स्थल के अतिरिक्त और बहुत से स्थानों पर लंगर का आयोजन किया गया। मुख्य पंडाल में कीर्तन, कथा के अतिरिक्त गुरू जी स्वयं संगत को सम्बोधन करते हुए प्रवचन करते। गुरू जी ने कहाः मनुष्य और प्रभु में केवल "अहँ भाव" ही दीवार रूप में खड़ा है। यदि हम अपने अहँ भाव को समझने की चेष्टा करके यह जान लें कि हम केवल शरीर नहीं है। शरीर तो केवल माध्यम है हमारी आत्मा के रहने के लिए घर या मकान है। इसमें बसने वाली आत्मा ही शुद्ध रूप में ब्रहम है, केवल आत्मा पर अभियान रूपी मैल चिपकी हुई है, जिसे हमने नाम रूप जल से धोना है, जिससे वह प्रकट हो जाए अथवा दूसरे शब्दों मे हमारी आत्मा रूपी शुद्ध ब्रहम सूक्ष्म रूप में है अथवा निन्द्रा में सो रहा है। हमें हरिनाम के अमृत से उसे सूक्ष्म रूप से विकसित करना है अथवा हरिनाम के अमृत से अचेत अवस्था को जागृत करना है। जिससे वह स्वयँ के अस्तित्व को समझ सके और देह अभिमान को त्यागकर पूर्ण ब्रहम होने का आनन्द प्राप्त कर सके।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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