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22. भाई फिराया जी

पँजाब की दो नदियों के स्थल सतलुज और व्यास के बीच में बसे हुए क्षेत्र को दोआबा कहते हैं। यह क्षेत्र उपजाऊ हैं, अतः यहाँ समृद्धि है और जनसँख्या भी अधिक है। श्री गुरू अमरदास जी के जीवनकाल में यहाँ गोरखनाथ के शिष्यों के कई मठ थे, जिससे वह अपने योग मत का प्रचार करते थे। वास्तविकता यही थी कि जनसाधारण तो गृहस्थ त्याग नहीं सकता था, किन्तु कुछ निखटू लोग इनके चँगुल में फँस जाते थे और वह इन योगियों के प्रतिनिधि बनकर गाँव गाँव घूमकर भिक्षा माँगकर अथवा लोगों को योगियों की चमत्कारी शक्तियों का भय दिखाकर खाद्यान अथवा धन इकटठा करते रहते थे। इस प्रकार योगी लोग किसानों और मजदूरों का शोषण करवाते रहते थे। किन्तु बदले में ये लोग किसी काम नहीं आते थे। न तो यह लोग किसी को आध्यात्मिक ज्ञान देकर उनके कल्याण की बात सोचते थे और न ही उनके साँसारिक व्यवहार में किसी प्रकार के सहायक होते थे, अपितु अपनी जीविका का बोझ भी इन्हीं गृहस्थियों पर डालकर उनको हीन दृष्टि से देखते थे और स्वयँ को त्यागी बताकर एक आदर्श व्यक्ति घोषित करते थे। भाई फिराया जी इस क्षेत्र के निवासी थे। वह योगियों द्वारा जनता का शोषण और उनके तिरस्कार से बहुत खिन्न हुआ करते थे। वह सदैव विचारमग्न रहते कि मानव जीवन का जो मुख्य उद्देश्य है, उसकी प्राप्ति के मार्ग में योगी लोग बाधक हैं, क्योंकि से स्वयँ भ्रमित हैं। इनका मुख्य लक्ष्य उदरपूर्ति है, किसी का कल्याण नहीं। अतः वह पूर्ण गुरू जी खोज में निकल पड़े। प्रभु ने इनको विवेक बुद्धि दी हुई थी, इसलिए इनकी पैनी नजर से पाखण्डी बच नहीं सकते थे। सत्य की खोज के यात्री को एक दिन एक व्यक्ति मिला, जिसका नाम कटारा जी था। यह भी आत्मिक शान्ति के लिए विभिन्न स्थानों पर भटक रहे थे। दोनों का लक्ष्य एक ही था। अतः धीरे–धीरे मित्रता बढ़ती गई। एक दिन इनकी खोज रँग लाई। किसी व्यक्ति ने इन्हे बताया कि पँजाब में शाही सड़क पर स्थित श्री गोइँदवाल साहिब में एक महापुरूष निवास करते हैं जो कि श्री गुरू नानक देव जी के उत्तराधिकारी हैं और पूर्ण पुरूष हैं। भाई फिराया जी ने कटारा जी को बताया कि यह स्थान तो हमारे जिले के निकट ही पड़ता है। मैंने इनकी स्तुति पहले भी सुनी है, परन्तु ध्यान नहीं दिया क्योंकि मैंने कई बार धोखा खाया है और पाया है– ऊँची दुकान फीका पकवान वाली कहावत अनुसार सब कुछ छल–कपट होता है, परन्तु इस बार उन्होंने अपने मित्र भाई कटारा जी के साथ श्री गोइँदवाल साहिब जी में जाने का निश्चय किया। श्री गोइंदवाल साहिब जी में उन्होंने अपनी विचारधारा के विपरीत पाया। यहाँ पर अभ्यागत का स्वागत होता है और हर प्रकार की सुख सुविधा देकर दिन रात निष्काम सेवा की जाती है। ये लोग श्री गोइँदवाल साहिब जी के वातावरण से बहुत ही प्रभावित हुए। इन्होंने पाया कि प्रत्येक सिक्ख मन ही मन प्रभु भजन में लीन रहता है और हाथों से बिना भेदभाव जनसाधारण की सेवा में तत्पर रहता है, किसी से कोई अभिलाषा नहीं की जाती। इस सुखमय, भयरहित वातावरण में दोनों भक्तजनो ने कुछ दिन व्यतीत किये और फिर गुरू जी के दर्शनों के लिए उपस्थित हुए। गुरू जी ने कुशलक्षेम पूछी। इन लोगों ने अपने कड़वे अनुभव बताते हुए कहाः हे गुरू जी ! मानव समाज में बहुत ढोंग हैं, इसलिए अधिकाँश जनसाधारण अज्ञानता के कारण भटकता फिर रहा है। ढोंगी लोग नये–नये जाल रचकर अपनी जीविका के लिए जनता को गुमराह करते हैं और उनका सत्य से विश्वास उठ जाता है क्योंकि स्थान–स्थान पर पाखण्डियों ने अपनी दुकानदारी अनुसार दलाल फैला रखे हैं जो रूढ़िवादी लोगों को जँत्र–मँत्र तथा तँत्र के झाँसे में लागों को फुसलाकर भयभीत कर अपना उल्लू सीधा करते हैं अथवा धन ऐंठ लेते हैं। गुरू जी ने उन्हें साँत्वना दी और कहाः प्रभु भली करेंगे। ठीक वैसे ही होगा जैसे शेर की गरज सुनकर छोटे–छोटे पशु–पक्षी भाग जाते हैं अथवा सूर्य उदय होने पर अँधकार नही रहता। जैसे ही शाश्वत ज्ञान का प्रकाश फैलेगा और ये ढोंगी पाखण्डी भाग खड़े होंगे। बस थोड़ा धैर्य रखकर स्वयँ को सँयम में लायें और गुरमति सिद्धान्तों का गहन अध्ययन करके उसी के अनुरूप जीवनयापन करने का अभ्यास करें। गुरू आज्ञा अनुसार इन दोनों ने गुरू जी के सानिध्य में रहकर उज्जवल जीवन जीने की दक्षता प्राप्त कर ली। जब गुरू जी को महसूस हुआ कि भाई फिराया जी और उनके मित्र कटारा जी करनी–कथनी के बली हो गये हैं तो उन्होंने उन्हें जम्मू क्षेत्र में प्रचार हेतु अपना प्रतिनिधि नियुक्त करके मँजीदार नियुक्त किया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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