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2. गुरू का मिलाप

इस पुरूष को क्या पता है कि संगत और किसकी बाणी से इसके जीवन में पलटा आ जाना होता है। फिर गुरू के शब्द में इतनी शक्ति है कि जो सुनने से लोहे से लाल, काँच से हीरा, मूर्ख से ज्ञानी, चोर से साध बन जाता है। जिसका सबूत अमरदास जी के जीवन बदलाव से मिलता है। श्री गुरू अंगद देव जी की सुपुत्री बीबी अमरो की शादी अमरदास जी के भतीजे के साथ हुई थी जिसके मन में गुरू की सुपुत्री होने के कारण गुरबाणी का अथाह प्रेम था। एक दिन अमृत समय में बीबी अमरो श्री जपुजी साहिब का पाठ कर रही थी कि अमरदास जी के मन में अमृत बाणी की मधुर धुन पड़ गई और फिर वही गुरबाणी का बाण मन में धँस गया। सारी बाणी का पाठ बड़ी मस्ती और प्रेम के साथ सुनते रहे। बाणी की समाप्ति के बाद अमरदास जी ने अमरो जी से पुछा किः यह किस पुरूष की बाणी है जिसके सुनने से मेरा मन तन निहाल हो गया है। बीबी जी ने कहाः यह बाणी जगत् गुरू नानक देव जी की है जिनके पद पर अब उनके ही स्वरूप श्री गुरू अंगद देव जी हैं। तब अमरदास जी ने कहाः बेटी ! मुझे उनके दर्शन करवाओ। अमरो जी अमरदास जी को खडूर साहिब ले गई। उस समय गुरू अंगद देव जी संगतों को उपदेश सुना रहे थे। अमरदास जी गुरू अंगद देव जी के दर्शन करते ही चरणों में गिर पड़े। वो कितनी ही देर तक गुरू जी के चरणों में पड़े रहे। तब गुरू जी ने अथाह प्रेम देखकर अमरदास जी को गले लगा लिया। उसी दिन अमरदास जी गुरू के सिक्ख बनकर गुरू जी के दर पर ही पड़े रहे, घर नहीं गये। लोक लाज की कोई परवाह नहीं की। प्रेम और विश्वास के साथ गुरू जी की सेवा में लग गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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