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11. रूढ़िवादियों द्वारा श्री गुरू अमरदास जी के विरूद्ध आपत्ति

श्री गुरू अमरदास जी समस्त मानव कल्याण हेतु कार्यों में व्सस्त थे वे उनका मुख्य उद्देश्य निम्न स्तर का जीवनयापन करने वाले परिवारों का उत्थान करके समाज में उनको समानता का जीवन जीने के लिए अधिकार दिलवाना था। अतः उन्होंने श्री गुरू नानक देव जी के सिद्धान्तों को जिनको वह गुरमति कहते थे, व्यवहारिक रूप देकर जोरों–शोरों से प्रचार-प्रसार प्रारम्भ कर दिया। इन कार्यों में: 1. सर्वप्रथम कार्य था कि "गुरू का लँगर" जो समस्त मानव जाति के लिए बिना भेदभाव एक समान था जिसे उन्होंने प्रत्येक जिज्ञासु के लिए अनिवार्य कर दिया था। 2. नारी जाति को पुरूष समान अधिकर देना। जिसमें आपजी ने विधवा महिलाओं के लिए पुर्नविवाह की अनुमति प्रदान कर दी, इसके साथ ही उन्होंने एक विशेष आदेश जारी किया कि किसी भी महिला को उसके मृत पति के साथ सती नहीं किया जाएगा और किसी भी महिला को कोई घूँघट निकालने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। भले ही वह नवविवाहिता की क्यों ने हो। 3. मूर्ति पुजा तथा देवी देवताओं का त्यागकर, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक परमात्मा की उपासना करना। वैसे इन सिद्धान्तों पर श्री गुरू नानक देव जी बहुत कार्य कर चुके थे किन्तु इनका समाज में विस्तार करना अभी बाकी था। इसलिए यह कार्य इन्होंने अपने उत्तराधिकारियों के लिए छोड़ दिया था। अब वह उचित समय था जब इन सिद्धान्तों का समस्त देश में प्रचार–प्रसार किया जाता। अतः श्री गुरू अमरदास जी ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने प्रतिनिधि नियुक्त किये जिनकी सँख्या बाईस तक हो गई और इसके अतिरिक्त बावन सहायक प्रतिनिध नियुक्त किये इनको उस समय की भाषा में मँजीदार तथा पीढ़ेदार कहा जाता था। मँजीदार का अर्थ था बड़ा आसन तथा पीढ़े का अर्थ था छोटा आसन। इन लोगों ने उनकी सहायता के अनुसार उपाधियां देकर सम्मानित किया गया था। इनका कार्य क्षेत्र अपना पैतृक नगर अथवा कस्बा ही हुआ करता था, जिनमें इन मँजीदारों अथवा पीड़ेदारों ने गुरमति के सिद्धान्त जनसाधारण को उनके कल्याण के लिए समझाने होते थे कि सहज मार्ग अपनाकर जीवन सुखमय बनाओ और रूढ़िवादी अथवा दकियानूसी विचार त्यागकर भाईचारे और परस्पर प्रेम से मानवता का उत्थान करने में सहायक बनो। परन्तु यह सब समाज के तथाकथित ठेकेदारों, पुजारी वर्ग को नहीं भाता था क्योंकि उनकी दुकानदारी बन्द होती थी और उनके पेट पर लात पड़ती थी। वह अपनी जीविका के लिए बौखला उठे क्योंकि श्री गुरू नानक देव जी के सिद्धान्तों को मानने वाले उनके चँगुल से निकलते जा रहे थे। इस प्रकार वे अपनी मनमानी करके जनता का शोषण करने में अपने आप को असमर्थ पा रहे थे क्योंकि जनता में जागृति लाई जा रही थी। पँजाब में उन दिनों सखी सरवड़ियों की गद्दी चलती थी। ये लोग अपने मृत पीर की कब्र की पूजा करते थे और मनौतियां मानते थे। साधारण किसान (हिन्द, मुस्लिम) दोनों इनके चँगुल में फँसे हुए थे। गुरूवार को ये सरवरिए लोग कब्र पर कव्वालियां इत्यादि गाते और लोगों से दूध, अनाज तथा धन आदि मनौतियों के रूप में लेते थे। इस प्रकार अंधविश्वास में जनता का शोषण चलता रहता था। इन कब्र पूजकों को लोग खवाजे कहकर पुकारते थे। जैसे ही गुरू जी के प्रतिनिधियों ने गुरमति प्रचार–प्रसार का आन्दोलन चलाया और लोगों में अंधविश्वास को हटा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से परमात्मा की उपासना की बात की तो स्वभाविक ही लोग इनके चँगुल से स्वतन्त्र होकर एकीश्वर की पूजा यानि की उसके सिमरन में लीन हो गये जिससे खवाजे बौखला गये बदले की आग में जलने लगे। दूसरी और जाति–पाति अथवा वर्ण–आश्रम का भेदभाव उत्पन्न करके जनता का शोषण करने वाले पुजारी, पुरोहितगण आदि, पहले से ही गुरूमति प्रचार के विरूद्ध मोर्चा सम्भल बैठे थे। अतः इन लोगों ने मिलकर एक युक्तिपूर्ण योजना बनाई। जिसके अर्न्तगत गोइन्दवाल के चौधरी और स्वर्गीय गोइंदे के लड़के को बहकाकर अपने साथ मिला लिया। निश्चय यह किया गया कि गुरू जी को गोइंदवाल खाली करने पर विवश कर दिया जाए। इस कार्य के लिए प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष एक निवेदन पत्र गोइन्दे के परिवार के सदस्यों की ओर से भेजा जाए कि गुरू जी ने हमारी पैतृक भूमि पर अवैध कब्जा किया हुआ है, कृप्या हमें इनसे खाली करवाके पुनः लौटाया जाए। योजना अनुसार ऐसा ही किया गया और आरोप–पत्र लाहौर के राज्यपाल के न्यायालय में प्रस्तुत किया गया। लाहौर के राज्यपाल खिजर ख्वाजी ने जाँच के आदेश दे दिये। जाँचकर्ता दल श्री गोइंदवाल साहिब में पहुचा। उन्होंने गुरू जी के लंगर से भोजन किया और चारों और निष्काम सेवा भजन होते देखा तो उनको कहीं कोई आपत्तिजनक बात दृष्टिगोचर नहीं हुई। अन्त में उन्होंने गुरू जी से भूमि प्राप्ति की वार्ता सुनी। गुरू जी ने उन्हें बताया कि यह भूमि हमें गोइन्दे मरवाह ने अपनी इच्छा से भेंट में दी थी उसका भवन निर्माण में बहुत योगदान रहा है। इस प्रकार यह मुकदमा रद कर दिया गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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