10. श्री गुरू अमरदास साहिब जी द्वारा
सिक्खी का प्रचार
गुरू जी ने भारत के बहुत से भागों में सिक्खी प्रचार के लिए दौरा
किया। सबसे पहले गुरू जी कुरूक्षेत्र गये। आपका विचार ज्यादातर तीर्थों पर जाने का
था, क्योंकि वहाँ लोग तो एकत्रित होते रहते हैं, जिससे उनका सहज की प्रचार हो जाता
है। दूसरा वहाँ पाखँडी लोग बहुत रहते हैं, जो कि आते जाते यात्रियों को कई प्रकार
की पाखँड रचना करके लूटते रहते हैं। कई लोगों का विचार है कि गुरू साहिब तीर्थ
यात्रा के विचार से गँगा जी तथा हरिद्वार आदि गये थे। यह सब गल्त है, क्योंकि गुरू
ने ही गुरबाणी में लिखा हैः
तीरथु नावण जाउ तीरथु नाम है ।।
तीरथु सबद बीचारू अंतरि गिआनु है ।। अंग 687
अर्थात् जो लोग परमात्मा का नाम जपते हैं, वो तीर्थ समान ही है।
अतः उन लोगों को, जो परमात्मा का नाम जपते हैं, तीर्थों पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं
है। और गुरू का शब्द भी तीर्थ है, जिससे आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है, वह भी
तीर्थ समान है। आप लोगों को सुधारने के लिए तीर्थों पर गये थे। उन दिनों यमनों का
राज्य था, इसलिए हिन्दुओं पर कई प्रकार के कर लगा रखे थे। तीर्थ पर जाने वालों से
भी कर वसूल किया जाता था, कुरूक्षेत्र के समीप गुरू जी को जजिया कर वालों ने रोक
लिया, पर गुरू जी ने जजिया कर देने से इन्कार कर दिया और उन्हें कुछ उपदेश दिये, तो
वह गुरू जी के प्रताप के आगे झूक गये और उन्होंने कहा कि जो भी गुरू जी के साथ हैं,
उनसे जजिया कर नहीं लिया जायेगा। बस, फिर क्या था, जिससे पूछो वही यह बात बोले कि
में गुरू जी के साथ हूं। इस प्रकार गुरू जी गँगा जमुना, हरिद्वार आदि स्थानों पर
सिक्खी का प्रचार करके और कई इलाकों में सिक्खी प्रचार के लिये मुखी सिक्खों के पद
स्थापित कर आये, जो निम्नलिखित हैः
1. भाई लालो
4. भाई केदारी
7. भाई राजा राम
10. भाई मानक चँद
13. भाई सज्जन मल्ल
2. भाई गंगू शाह
5. भाई अला यार
8. भाई बुआ
11. भाई इन्दाल
14. भाई खेड़ा आदि।
3. भाई माई दास
6. भाई महेसा
9. भाई सावन मल्ल
12. भाई मुरारी