8. रागु वडहंसु
वडहंस राग में बाणी श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 557 से 594 तक अंकित है। इस
राग के गायन का समय दोपहर या अर्ध रात्रि माना गया है। खुशी भरी घोड़ीआ व दुखभरी
अलाहुणीआ इसी राग में गायन की गई है। इसकी एक किस्म वडहंस दखणी भी श्री गुरू ग्रंथ
साहिब जी में दर्ज है।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू नानक देव जी की बाणी के चउपदे राग वडहंस में अंग 557 से लेकर अंग 558
लाइन 8 तक दर्ज हैं।
2. श्री गुरू अमरदास जी की बाणी के चउपदे अंग 558 लाइन 9 से लेकर अंग 560 लाइन 17
तक दर्ज हैं।
3. श्री गुरू रामदास जी की बाणी के चउपदे अंग 560 लाइन 18 से लेकर अंग 562 लाइन 7
तक दर्ज हैं।
4. श्री गुरू अरजन देव जी की बाणी के चउपदे अंग 562 लाइन 8 से लेकर अंग 564 लाइन 16
तक दर्ज हैं।
5. श्री गुरू अमरदास जी की असटपदियाँ अंग 564 लाइन 17 से लेकर अंग 565 लाइन 17 तक
दर्ज हैं।
6. श्री गुरू नानक देव जी के छंत राग वडहंस में अंग 565 लाइन 18 से लेकर अंग 567
लाइन 14 तक दर्ज हैं।
7. श्री गुरू अमरदास जी की बाणी के छंत अंग 567 लाइन 15 से लेकर अंग 572 लाइन 2 तक
दर्ज हैं।
8. श्री गुरू रामदास जी की बाणी के छंत के छंत अंग 572 लाइन 3 से लेकर अंग 575 लाइन
4 तक दर्ज हैं।
9. श्री गुरू रामदास जी की बाणी घोड़ीआ अंग 575 लाइन 5 से लेकर अंग 576 लाइन 13 तक
दर्ज है।
10. श्री गुरू अरजन देव जी की बाणी के छंत अंग 576 लाइन 14 से लेकर अंग 578 लाइन 17
तक दर्ज हैं।
11. श्री गुरू नानक देव जी की बाणी अलाहणीआ अंग 578 लाइन 18 से लेकर अंग 582 लाइन
11 तक दर्ज है।
12. श्री गुरू अमरदास जी की बाणी अंग 582 लाइन 12 से अंग 585 लाइन 10 तक दर्ज है।
13. वडहंस की वार अंग 585 लाइन 12 से लेकर अंग 594 तक दर्ज है।
वडहंस राग में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
1. गुरू नानक देव जी
2. गुरू अमरदास जी
3. गुरू रामदास जी
4. गुरू अरजन देव जी