31. रागु जैजावंती
जीवात्मा सिरी राग से शुरू हुई और प्रभात तक पहुँची। प्रभात आत्मा एँव परमात्मा की
एकसुरता का प्रतीक है। जिसकी प्रभात हो गई, उसकी जय जयकार भी दोनों जहान में होती
है। जैजावंती राग श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का अन्तिम राग है और श्री गुरू ग्रंथ
साहिब जी के अंग १३५२ से १३५३ तक इस राग में केवल श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी की
रचना दर्ज है जो कि श्री गुरू गोबिन्द सिंह जी ने बाद में दमदमा साहिब के स्थान पर
दर्ज की। इस राग का गायन समय रात का दूसरा पहर निश्चित किया गया है।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू तेग बहादुर साहिब जी की बाणी अंग १३५२ से लेकर अंग १३५३ लाइन ३ तक
दर्ज है।
राग जैजावंती में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी