30. रागु प्रभाती
श्री आदि ग्रंथ साहिब जी का आखिरी एवं श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का तीसवां राग
प्रभाती रागु है। गुरू साहिब जी ने सिरी राग को सबसे प्रथम स्थान दिया जो इस बात का
प्रकटाव है कि जीवन का सफर अँधकार में आरम्भ होता है, पर जैसे जैसे यह गुरबाणी से
एकसुर होता है तो उसके जीवन की प्रभात चढ़ जाती है, इसीलिए श्री गुरू अरजन पातशाह जी
ने इस राग को अन्त में रखा। इसका गायन समय सुबह का पहला पहर है और श्री गुरू ग्रंथ
साहिब जी के अंग 1327 से 1351 तक इस राग में बाणी दर्ज है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब
जी के राग भेद अनुसार प्रभाती बिभास प्रभाती दखणी एवं बिभास प्रभाती भी अंकित हैं।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू नानक देव जी के चउपदे अंग 1327 से लेकर अंग 1332 लाइन 16 तक दर्ज हैं।
2. श्री गुरू अमरदास जी के चउपदे अंग 1332 लाइन 18 से लेकर अंग 1335 लाइन 5 तक दर्ज
हैं।
3. श्री गुरू रामदास जी के चउपदे अंग 1335 लाइन 6 से लेकर अंग 1337 लाइन 13 तक दर्ज
हैं।
4. श्री गुरू अरजन देव जी के चउपदे अंग 1337 लाइन 14 से लेकर अंग 1341 तक दर्ज हैं।
5. श्री गुरू नानक देव जी की असटपदियाँ अंग 1342 से लेकर अंग 1346 लाइन 1 तक दर्ज
हैं।
6. श्री गुरू अमरदास जी की असटपदियाँ अंग 1346 लाइन 2 से लेकर अंग 1347 लाइन 6 तक
दर्ज हैं।
7. श्री गुरू अरजन देव जी की असटपदियाँ अंग 1347 लाइन 7 से लेकर अंग 1349 लाइन 6 तक
दर्ज हैं।
8. भक्त कबीर जी, भक्त नामदेव जी और भक्त बेणी जी की बाणी अंग 1349 लाइन 7 से लेकर
अंग 1351 तक दर्ज है।
राग प्रभाती में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
1. गुरू नानक देव जी
2. गुरू अमरदास जी
3. गुरू रामदास जी
4. गुरू अरजन देव जी
भक्त साहिबान
1. भक्त कबीर जी
2. भक्त नामदेव जी
3. भक्त बेनी जी