29. रागु कलिआण
श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में कानड़ा राग के बाद राग कलिआण को स्थान दिया गया है और
यह अंग 1319 से 1326 तक अंकित है। कलिआण खुशी पैदा करने वाला राग है। इस राग में
गुरू रामदास जी व गुरू अरजन देव जी की बाणी दर्ज है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के
राग भेद अनुसार राग कलिआण भोपाली भी अंकित है। कलिआण और कलिआण भोपाली दोनों भिन्न
एवं स्वतन्त्र राग हैं। कलिआण राग के गायन का समय रात का पहला पहर है।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू रामदास जी की बाणी के चउपदे आदि अंग 1319 से लेकर अंग 1321 लाइन 13 तक
दर्ज हैं।
2. श्री गुरू अरजन देव जी की बाणी के चउपदे आदि अंग 1321 लाइन 14 से लेकर अंग 1323
लाइन 7 तक दर्ज हैं।
3. श्री गुरू रामदास जी की असटपदियाँ अंग 1323 लाइन 9 से लेकर अंग 1326 तक दर्ज
हैं।
राग कलियाण में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
1. गुरू रामदास जी
2. गुरू अरजन देव जी