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28. रागु कानड़ा
श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 1294 से 1319 तक इस राग को स्थान दिया गया है।
गायन करने वालों ने इसके अनेक भेद भी कल्पित किए हैं। बेशक इस राग को कठिन राग माना
गया है, पर इसके बावजूद इसकी लोकप्रियता ज्यों की त्यों है। यह राग रात्रि के दूसरे
पहर में गायन किया जाता है।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू रामदास जी के चउपदे अंग 1294 से लेकर अंग 1298 लाइन 4 तक दर्ज हैं।
2. श्री गुरू अरजन देव जी के चउपदे अंग 1298 लाइन 5 से लेकर अंग 1308 लाइन 5 तक
दर्ज हैं।
3. श्री गुरू रामदास जी की असटपदियाँ अंग 1308 लाइन 7 से लेकर अंग 1311 तक दर्ज
हैं।
4. श्री गुरू अरजन देव जी के छंत अंग 1312 से लेकर अंग 1312 लाइन 15 तक ही दर्ज
हैं।
5. कानड़े की वार महला 4, अंग 1312 लाइन 16 से लेकर अंग 1318 लाइन 15 तक दर्ज है।
6. भक्त नामदेव जी की बाणी अंग 1318 लाइन 16 से लेकर अंग 1318 तक ही दर्ज है।
राग कानड़ा में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
1. गुरू रामदास जी
2. गुरू अरजन देव जी
भक्त साहिबान
भक्त नामदेव
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