27. रागु मलार
पुरानी भारतीय कहावत है कि अगर 12 माह में से सावन का महीना निकाल दिया जाए तो पीछे
कुछ नहीं बचता। इसका भाव यह है कि मनुष्य जीवन में सावन महीने का महत्वपूर्ण स्थान
है, इसीलिए मलार राग का गायन भी सावन व भादों के महीने में ज्यादा किया जाता है।
वैसे यह राग रात के तीसरे पहर गाया जाता है पर वर्षा ऋतु में यह किसी भी समय गायन
किया जा सकता है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 1254 से 1293 तक यह राग सुशोभित
है। यह राग मनुष्य के भीतर छिपे हाव-भावों की तर्ज़मानी करता है।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू नानक देव जी के चउपदे अंग 1254 से लेकर अंग 1257 लाइन 11 तक दर्ज हैं।
2. श्री गुरू अमरदास जी के चउपदे अंग 1257 लाइन 12 से लेकर अंग 1262 लाइन 16 तक
दर्ज हैं।
3. श्री गुरू रामदास जी के चउपदे, पड़ताल आदि अंग 1262 लाइन 17 से लेकर अंग 1266
लाइन 3 तक दर्ज हैं।
4. श्री गुरू अरजन देव जी के चउपदे, दुपदे, पड़ताल आदि अंग 1266 लाइन 4 से लेकर अंग
1273 लाइन 3 तक दर्ज हैं।
5. श्री गुरू नानक देव जी की असटपदियाँ अंग 1273 लाइन 4 से लेकर अंग 1275 तक दर्ज
हैं।
6. श्री गुरू अमरदास जी की असटपदियाँ अंग 1276 से लेकर अंग 1278 लाइन 2 तक दर्ज
हैं।
7. श्री गुरू अरजन देव जी के छंत अंग 1278 लाइन 4 से अंग 1278 लाइन 15 तक दर्ज हैं।
8. वार मलार की महला-1 अंग 1278 लाइन 17 से लेकर अंग 1291 तक दर्ज है।
9. भक्त नामदेव जी और भक्त रविदास जी की बाणी अंग 1292 से लेकर अंग 1293 तक दर्ज
है।
रागु मलार में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
1. गुरू नानक देव जी
2. गुरू अंगद देव जी
3. गुरू अमरदास जी
4. गुरू रामदास जी
5. गुरू अरजन देव जी
भक्त साहिबान
1. भक्त नामदेव जी
2. भक्त रविदास जी