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26. रागु सारंग

सदियों से भारतीय गायन का यह एक प्रमुख राग है। यह माना जाता है कि इस राग में सर्प भी मस्त होकर नाच उठते हैं भाव भटकते हुए व्यक्तियों को यह राग शांति तथा शीतलता प्रदान करता है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 1197 से 1253 तक इस राग से सम्बन्धित बाणी दर्ज है। इस राग के गायन का समय दिन का तीसरा पहर है।

महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू नानक देव जी के चउपदे अंग 1197 से लेकर अंग 1198 लाइन 6 तक दर्ज हैं।
2. श्री गुरू रामदास जी के चउपदे, पड़ताल आदि दुपदे अंग 1198 लाइन 7 से लेकर अंग 1202 लाइन 10 तक दर्ज हैं।
3. श्री गुरू अरजन देव जी के चउपदे, दुपदे, पड़ताल आदि अंग 1202 लाइन 11 से लेकर अंग 1231 लाइन 7 तक दर्ज है।
4. श्री गुरू तेग बहादर जी की बाणी राग सारंग में अंग 1231 लाइन 9 से लेकर अंग 1232 लाइन 4 तक दर्ज है।
5. श्री गुरू नानक देव जी की असटपदियाँ अंग 1232 लाइन 5 से लेकर अंग 1233 लाइन 7 तक दर्ज हैं।
6. श्री गुरू अमरदास जी की असटपदियाँ अंग 1233 लाइन 8 से लेकर अंग 1235 लाइन 2 तक दर्ज हैं।
7. श्री गुरू अरजन देव जी की असटपदियाँ अंग 1235 लाइन 3 से लेकर अंग 1236 लाइन 14 तक दर्ज हैं।
8. श्री गुरू अरजन देव जी के छंत अंग 1236 लाइन 15 से लेकर अंग 1237 लाइन 9 तक दर्ज हैं।
9. सारंग की वार महला-4 (श्री गुरू रामदास जी) अंग 1237 लाइन 10 से लेकर अंग 1251 लाइन 15 तक दर्ज है।
10. भक्त कबीर जी, भक्त नामदेव जी, परमानन्द जी और सुरदास जी की बाणी अंग 1251 लाइन 16 से लेकर अंग 1253 तक दर्ज है।

रागु सारंग में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:

गुरू साहिबान
1. गुरू नानक देव जी
2. गुरू अंगद देव जी
3. गुरू अमरदास जी
4. गुरू रामदास जी
5. गुरू अरजन देव जी
6. गुरू तेग बहादर साहिब जी

भक्त साहिबान
1. भक्त कबीर जी
2. भक्त नामदेव जी
3. भक्त परमानन्द जी
4. भक्त सुरदास जी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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