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25. रागु बसंत

मनुष्य का जन्म प्रकृति में से हुआ और यह वनस्पति की छांव में मौला गया, बढ़ा-फूला एवं प्रवान चढ़ा। यह सब कुछ उसके भीतर उमंग पैदा करता है। वनस्पति का खिलना मनुष्य के भीतर नए रंग भरता है क्योंकि बसंत ऋतु उल्लास की ऋतु है तथा ऋतुओं में इसे सबसे महत्वपूर्ण स्थान भी प्राप्त है। इस सम्बन्ध में गुरू वाक्य है:

वनसपति मउली चड़िआ बसंतु ।।
इहु मनु मउलिआ सतिगुरू संगि ।।

इस राग की बाणी श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 1168 से 1196 तक दर्ज है । इस राग के गायन का समय दिन का दूसरा पहर तथा बसंत ऋतु में किसी भी समय गाया जा सकता है। इसकी एक किस्म बसंत हिंडोल भी श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में दर्ज है।

महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू नानक देव जी के चउपदे, दुपदे राग बसंतु में अंग 1168 से लेकर अंग 1172 लाइन 2 तक दर्ज है।
2. श्री गुरू अमरदास जी के दुतुके आदि अंग अंग 1172 लाइन 3 से लेकर अंग 1177 लाइन 12 तक दर्ज हैं।
3. श्री गुरू रामदास जी के इक तुके अंग 1177 लाइन 13 से लेकर अंग 1179 तक दर्ज हैं।
4. श्री गुरू अरजन देव जी के दुतुके, इक तुके, चउपदे आदि अंग 1180 से लेकर अंग 1186 लाइन 6 तक दर्ज हैं।
5. श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की बाणी राग बसंतु हिंडोल में अंग 1186 लाइन 8 से लेकर अंग 1187 लाइन 5 तक दर्ज है।
6. श्री गुरू नानक देव जी की असटपदियाँ अंग 1187 लाइन 6 से लेकर अंग 1191 लाइन 7 तक दर्ज हैं।
7. श्री गुरू रामदास जी की असटपदियाँ अंग 1191 लाइन 8 से लेकर अंग 1192 लाइन 1 तक दर्ज हैं।
8. श्री गुरू अरजन देव जी की असटपदियाँ अंग 1192 लाइन 2 से लेकर अंग 1193 लाइन 5 तक दर्ज हैं।
9. बसंतु की वार महला-5 (श्री गुरू अरजन देव जी) अंग 1193 लाइन 6 से लेकर अंग 1193 लाइन 13 तक ही दर्ज है।
10. भक्त कबीर जी, भक्त नामदेव जी, भक्त रविदास जी और भक्त रामानन्द जी की बाणी अंग 1193 लाइन 14 से लेकर अंग 1196 तक दर्ज है।

रागु बसंत में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:

गुरू साहिबान
1. गुरू नानक देव जी
2. गुरू अमरदास जी
3. गुरू रामदास जी
4. गुरू अरजन देव जी
5. गुरू तेग बहादर साहिब जी

भक्त साहिबान
1. भक्त कबीर जी
2. भक्त नामदेव जी
3. भक्त रविदास जी
4. भक्त रामानन्द जी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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