2. रागु माझ
इस राग की बाणी श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 94 से 150 तक दर्ज है। यह राग
पंजाब के इलाके मांझा में विकसित हुआ प्रवान माना जाता है क्योंकि भारतीय सँगीत में
कहीं भी यह राग नहीं मिलता। माझ का भाव मध्य होता है। सो, इसके अध्यात्मिक अर्थ है
मनुष्य के हृदय में से निकली हूक। श्री गुरू अरजन देव साहिब जी की महत्वपूर्ण रचना
"बारह माहा" भी इसी राग में है। इस राग का सम्बन्ध पँजाब से होने के कारण किसी भगत
की वाणी इसराग में नहीं है। इस राग के गायन का समय रात्रि का पहला पहर है।
महत्वपूर्ण नोट
1. श्री गुरू रामदास जी के चउपदे राग माझ में अंग 94 से अंग 96 लाईन 13 तक हैं।
2. श्री गुरू अरजन देव जी के चउपदे राग माझ में अंग 96 लाईन 14 से लेकर अंग 109
लाईन 6 तक हैं।
3. श्री गुरू नानक देव जी, श्री गुरू अमरदास जी, श्री गुरू रामदास जी और श्री गुरू
अरजन देव जी की असटपदियाँ राग माझ में अंग 109 लाईन 7 से अंग 133 लाईन 4 तक हैं।
4. श्री गुरू अरजन देव जी की "बारह माहा" की बाणी राग माझ में अंग 133 लाईन 6 से
लेकर अंग 136 लाईन 13 तक दर्ज है।
5. श्री गुरू अरजन देव जी की "दिन रैणि" की बाणी राग माझ में अंग 136 लाईन 14 से
लेकर अंग 137 लाईन 12 तक दर्ज है।
6. राग माझ में अंग 137 लाईन 13 से माझ की वार सलोंकों के साथ अंग 150 तक दी गई है।
7. राग माझ में भक्तों की बाणी नहीं है।
राग माझ में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार
गुरू साहिबान जी
1. गुरू नानक देव जी
2. गुरू अंगद देव जी
3. गुरू अमरदास जी
4. गुरू रामदास जी
5. गुरू अरजन देव जी
राग माझ में गुरू साहिबान जी का एक शबदः
रागु माझ चउपदे घरु १ महला ४
ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुर प्रसादि ॥
हरि हरि नामु मै हरि मनि भाइआ ॥
वडभागी हरि नामु धिआइआ ॥
गुरि पूरै हरि नाम सिधि पाई को विरला गुरमति चलै जीउ ॥१॥
मै हरि हरि खरचु लइआ बंनि पलै ॥
मेरा प्राण सखाई सदा नालि चलै ॥
गुरि पूरै हरि नामु दिड़ाइआ हरि निहचलु हरि धनु पलै जीउ ॥२॥
हरि हरि सजणु मेरा प्रीतमु राइआ ॥
कोई आणि मिलावै मेरे प्राण जीवाइआ ॥
हउ रहि न सका बिनु देखे प्रीतमा मै नीरु वहे वहि चलै जीउ ॥३॥
सतिगुरु मित्रु मेरा बाल सखाई ॥
हउ रहि न सका बिनु देखे मेरी माई ॥
हरि जीउ क्रिपा करहु गुरु मेलहु जन नानक हरि धनु पलै जीउ ॥४॥१॥