17. रागु गोंड
यह बहुत ही प्रभावशाली राग माना जाता है। पुरातन कीर्तनकार इस राग को बिलावल के साथ
मिलाकर गाते थे। श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में इस राग को अंग 859 से 875 तक अंकित
किया गया है। इस राग के गायन का समय दिन का दूसरा पहर है।
महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू रामदास जी के चउपदे राग गोंड में अंग 859 से लेकर 862 लाइन 2 तक दर्ज
हैं।
2. श्री गुरू अरजन देव जी के चउपदे अंग 862 लाइन 4 से लेकर अंग 869 लाइन 7 तक दर्ज
है।
3. श्री गुरू अरजन देव जी की असटपदियाँ अंग 869 लाइन 8 से लेकर अंग 869 तक ही हैं।
4. भक्त कबीर जी, भक्त नामदेव जी और भक्त रविदास जी की बाणी अंग 870 से लेकर अंग
875 तक दर्ज है।
राग गोंड में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:
गुरू साहिबान
1. गुरू रामदास जी
2. गुरू अरजन देव जी
भक्त साहिबान
1. भक्त कबीर जी
2. भक्त नामदेव जी
3. भक्त रविदास जी