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11. रागु जैतसरी

सँस्कृत ग्रंथों में इस राग को जैश्री या जयंत श्री नामों से लिखा गया है। श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में इसे जैतसरी राग के नाम से लिखा गया है। यह श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के अंग 696 से 710 तक अंकित है तथा इसके गायन का समय चौथा पहर निश्चित किया गया है।

महत्वपूर्ण नोट:
1. श्री गुरू रामदास जी की बाणी के चउपदे राग जैतसरी में अंग 696 से लेकर अंग 699 तक दर्ज हैं।
2. श्री गुरू अरजन देव जी की बाणी के चउपदे, दुपदे अंग 700 से लेकर अंग 702 लाइन 16 तक दर्ज हैं।
3. श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी की बाणी राग जैतसरी में अंग 702 लाइन 17 से लेकर अंग 703 लाइन 10 तक दर्ज है।
4. श्री गुरू अनजन देव जी के छंत और महला 5 घर 2 छंत अंग 703 लाइन 11 से लेकर अंग 705 लाइन 17 तक दर्ज हैं।
5. जैतसरी महला 5 वार सलोका नालि अंग 705 लाइन 17 से लेकर अंग 710 लाइन 13 तक दर्ज है।
6. भक्त रविदास जी की बाणी अंग 710 लाइन 14 से लेकर अंग 710 तक ही है।

रागु जैतसरी में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार:

गुरू साहिबान
1. गुरू रामदास जी
2. गुरू अरजन देव जी
3. गुरू तेग बहादर साहिब जी

भक्त साहिबान
भक्त रविदास जी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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