1. गुरबाणी का राग सिरी राग
श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रथम राग सिरी रागु है। यह राग भारतीय परम्परा में सब
से प्राचीन माना जाता है। गायन में इसे सबसे कठिन भी माना जाता है। इसकी महत्वता को
भाई गुरदास जी ने इस प्रकार चित्रण किया है: "रागन में सिरी रागु पारस बखान है।" इस
राग के गायन का समय पिछले पहर का है। इसे प्रथम राग का स्थान देने के पीछे गुरू
पातशाह ने गुहज का प्रकटाव किया है। इस राग से सम्बन्धित बाणी श्री गुरू ग्रंथ
साहिब जी के अंग 14 से 93 तक अंकित है।
महत्वपूर्ण नोट
1. इस राग में सबसे पहले महला-1 यानि कि श्री गुरू नानक देव जी की बाणी आती है, जो
कि अंग 14 से लेकर अंग 26 लाईन 2 तक है।
2. राग सिरीराग में अंग 26 लाइन 3 से लेकर अंग 39 लाईन 14 तक महला-3 यानि कि श्री
गुरू अमरदास साहिब जी की बाणी है।
3. राग सिरीराग में अंग 39 लाईन 15 से लेकर अंग 42 लाईन 5 तक, महला-4 यानि कि श्री
गुरू रामदास साहिब जी की बाणी है।
4. राग सिरीराग में अंग 42 लाईन 6 से लेकर अंग 53 लाईन 6 तक महला-5 यानि कि श्री
गुरू अरजन देव जी की बाणी है।
5. राग सिरीराग में अंग 53 लाईन 7 से लेकर अंग 64 लाईन 13 तक महला-1 यानि श्री गुरू
नानक देव जी की "असटपदियाँ" है।
6. राग सिरीराग में अंग 64 लाइन 14 से लेकर अंग 70 लाईन 5 तक महला-3 यानि श्री गुरू
अमरदास जी की "असटपदियाँ" हैं।
7. राग सिरीराग में अंग 70 लाईन 6 से अंग 71 लाईन 13 तक महला 5 यानि श्री गुरू अरजन
देव जी की "असटपदियाँ" हैं।
8. राग सिरीराग में अंग 71 लाइन 14 से महले-1 के यानि गुरू नानक देव जी के 24 पदे
और महला-5 के यानि श्री गुरू अरजन देव जी के 21 पदे हैं।
9. राग सिरीराग में अंग 74 लाईन 16 से लेकर अंग 78 लाईन 6 तक महले-1, महले-4 और
महले-5 के यानि श्री गुरू नानक देव जी, श्री गुरू रामदास जी और श्री गुरू अरजन देव
जी की "पहरै" की बाणी दी गई है।
10. राग सिरीराग में अंग 78 लाईन 8 से अंग 79 लाईन 7 तक श्री गुरू रामदास जी के "छंत"
दिए गए हैं।
11. राग सिरीराग में अंग 79 लाईन 8 से लेकर अंग 81 लाईन 14 तक श्री गुरू अरजन देव
जी के "छंत" दिए गए हैं।
12. राग सिरीराग में अंग 81 लाईन 15 से अंग 82 तक श्री गुरू रामदास जी की "बणजारा"
बाणी है
13. सिरीराग में अंग 83 से लेकर अंग 91 लाईन 16 तक "सिरीराग की वार" सलोकों के साथ
दी है।
14. भक्त कबीर जी की, भक्त रविदास जी की, भक्त त्रिलोचन जी की और भक्त बेणी जी की
बाणी सिरीराग में अंग 91 लाईन 17 से लेकर अंग 93 तक है।
सिरीराग में बाणी सम्पादन करने वाले बाणीकार
गुरू साहिबान जी
1. श्री गुरू नानक देव जी
2. श्री गुरू अंगद देव जी
3. श्री गुरू अमरदास जी
4. श्री गुरू रामदास जी
5. श्री गुरू अरजन देव जी
भक्त साहिबान जी
1. भक्त कबीर जी
2. भक्त त्रिलोचन जी
3. भक्त बेणी जी
4. भक्त रविदास जी
सिरीराग में गुरू साहिबान जी का एक शबदः
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रागु सिरीरागु महला पहिला १ घरु १ ॥
मोती त मंदर ऊसरहि रतनी त होहि जड़ाउ ॥
कसतूरि कुंगू अगरि चंदनि लीपि आवै चाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥१॥
हरि बिनु जीउ जलि बलि जाउ ॥
मै आपणा गुरु पूछि देखिआ अवरु नाही थाउ ॥१॥ रहाउ ॥
धरती त हीरे लाल जड़ती पलघि लाल जड़ाउ ॥
मोहणी मुखि मणी सोहै करे रंगि पसाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥२॥
सिधु होवा सिधि लाई रिधि आखा आउ ॥
गुपतु परगटु होइ बैसा लोकु राखै भाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥३॥
सुलतानु होवा मेलि लसकर तखति राखा पाउ ॥
हुकमु हासलु करी बैठा नानका सभ वाउ ॥
मतु देखि भूला वीसरै तेरा चिति न आवै नाउ ॥४॥१॥
सिरीराग में भक्त साहिबान जी का एक शबदः
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
सिरीरागु कबीर जीउ का ॥ एकु सुआनु कै घरि गावणा
जननी जानत सुतु बडा होतु है,
इतना कु न जानै जि दिन दिन अवध घटतु है ॥
मोर मोर करि अधिक लाडु धरि पेखत ही जमराउ हसै ॥१॥
ऐसा तैं जगु भरमि लाइआ ॥
कैसे बूझै जब मोहिआ है माइआ ॥ १॥ रहाउ ॥
कहत कबीर छोडि बिखिआ रस इतु संगति निहचउ मरणा ॥
रमईआ जपहु प्राणी अनत जीवण बाणी इन बिधि भव सागरु तरणा ॥२॥
जां तिसु भावै ता लागै भाउ ॥
भरमु भुलावा विचहु जाइ ॥
उपजै सहजु गिआन मति जागै ॥
गुर प्रसादि अंतरि लिव लागै ॥३॥
इतु संगति नाही मरणा ॥
हुकमु पछाणि ता खसमै मिलणा ॥१॥ रहाउ दूजा ॥