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1861. गुरूद्वारा श्री किला तारागढ़ साहिब जी का क्या इतिहास
है ?
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गुरूद्वारा श्री किला तारागढ़ साहिब जी, ये श्री अनंदपुर
साहिब जी से थोड़ा बाहर है। ये श्री अनंदपुर साहिब जी से 5 किलोमीटर की दूरी पर
है। ये किला पहाड़ी राजाओं से सुरक्षा करने के हिसाब से बहुत एडवांस था। ये किला
पहाड़ी के सबसे ऊपर बनाया गया था, ताकि इस किले से कहिलुर किले की गतिविधियों पर
नजर रखी जा सके।
1862. वह गुरूद्वारा साहिब कौन सा है, जिस स्थान पर सातवें
गुरू हरिराऐ साहिब जी ने 11 मार्च सन् 1638 ईस्वी को छठवें गुरू हरगोबिन्द सहिब जी
से और आठवें गुरू हरकिशन साहिब जी ने सन् 1662 ईस्वी को गुरू हरराये साहिब जी से
गुरूगद्दी पायी थी।
1863. गुरूद्वारा श्री दुमालगढ़ साहिब जी (मन्जी साहिब) किस
स्थान पर सुशोभित है ?
1864. गुरूद्वारा श्री दुमालगढ़ साहिब (मन्जी साहिब) का
इतिहास क्या है ?
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गुरूद्वारा दुमालगढ़ श्री मन्जी साहिब, श्री केशगढ़ साहिब जी
के उत्तरी दिशा में है। दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी इस स्थान पर
साहिबजादा फतेह सिंघ जी को खुले मैदान में खिलाने के लिए लाते थे। उन्हे दौड़
करवानी, गतका आदि। गुरू जी जब इस स्थान पर थे, तब अजमेर सिंघ, जो कि बिलासपुर
का शासक था, उसने श्री आनंदपुर साहिब पर आक्रमण किया। सिक्खों की बागडोर भाई
सिंघ निशानची ने सम्भाली हुई थी। जँग में भाई मान सिंघ घायल हो गये और खालसा
झँडा (निशान साहिब) टूट गया। एक सिक्ख सैनिक ने गुरू जी को आकर बताया। गुरू जी
ने अपनी केसकी मैं से एक छोटा सा टुकड़ा, जिसको दुमाला भी कह सकते हैं, फाड़ा।
गुरू जी ने कहा कि आने वाले समय में खालसा निशान साहिब ना कभी झुकेगा ना कभी
गिरेगा। गुरू जी को देखकर साहिबजादा अजीत सिंघ जी ने भी जिनकी उम्र केवल पाँच
साल की थी, अपनी केसकी में से दुमाला फाड़ा।
1865. वो पावन पवित्र स्थान कौन सा है, जहाँ पर सातवें गुरू
हरिराये साहिब जी की सुपुत्री बीबी रूप जी का निवास स्थान था, उनके पास कुछ
इतिहासिक पुस्तकें थी, जो कि श्री मन्जी साहिब गुरूद्वारा साहिब में सुशोभित हैं।
पहले गुरू नानक देव जी की सेली टोपी (दस्तार), छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की
हस्तलिखित पोथी, बीबी वीरो जी का रूमाल आदि हैं।
1866. गुरूद्वारा माता जीतो जी साहिब किस स्थान पर सुशोभित
है ?
1867. गुरूद्वारा माता जीतो जी साहिब का क्या इतिहास है ?
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यह पवित्र स्थान माता जीत कौर जी की याद में सुशोभित है।
दसवें गुरू श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी की पहली पत्नि माता जीत कौर थी। ये 5
दिसम्बर सन् 1700 में जोती-जोत समायी थी। इनका सँस्कार शहर से दूर चक्क नानकी
की बाउण्डरी में गाँव अगमगढ़ में किया गया। लोगों ने पहले यहाँ पर थड़ा बनाया हुआ
था, फिर कुछ समय बाद सिक्खों ने यहाँ पर गुरूद्वारा साहिब जी का निर्माण किया।
1868. गुरूद्वारा श्री पातशाही दसवीं कलमोट, ग्राम कलमोट,
तहसील नाँगल, जिला रोपड़ का इतिहास क्या है ?
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विभोर में दसवें गुरू गोबिन्द सिंघ जी काफी समय रहे। संगत
और सिक्ख दर्शन करने के लिए आने लग गए। एक बार दीवान सजा हुआ था, तो एक इलाके
की संगत ने आकर सत्कार किया और मुरझाँ मुख खाली हाथ नमस्कार किया और बताया कि
श्री आनंदपुर साहिब जँग होने के कारण हम वहाँ हाजिर नहीं हो सके। हम यहाँ पर कई
तरह की सामाग्री वस्त्र-शस्त्र ला रहे थे और नकदी भी बहुत थी पर कलमोट के लोगों
ने डाकुओं जैसे सब कुछ लुट लिया। हम आपका वास्ता देते रहे, कि ये आपकी अमानत
है, पर वों नहीं माने। गुरू साहिब जी ने संगतों को धीरज दिया और बोले कि आपकी
भेंट हमें परवान हो गयी है, हमारे पास नहीं आई तो क्या हुआ, अब अपनी वस्तु हम
अपने आप मोड़ेंगे। यह सुनकर भाई आलम सिंघ ने विनती की, कि आज्ञा दो, हम अभी जाकर
अपनी वस्तुएँ वापिस ले आते हैं। गुरू जी ने कहा जल्दी करने की जरूरत नहीं है,
कल ऐसा करेंगे। अगले दिन गुरू जी, 100 सिक्खों को लेकर नदी पार करके कलमोट
पहुँचे। गुरू साहिब जी एक पेड़ के नीचे ठहरे और सिक्खों ने अचानक गाँव पर हमला
करके खलबली मचा दी। जो अड़ा जो झड़ा। जान बचाने के लिए लोग भागे। सिक्खों ने उन
घरों को बिलकुल नहीं छोड़ा, जिसमें से गुरू जी की अमानत लूट का माल मिला और ऐसे
घरों के मालिक डर के मारे किले के अन्दर जा घुसे। दिन छुप गया था। सिक्खों ने
प्रशादा तैयार करके खाया और आराम किया। वैसे ही गुरू जी वहाँ पेड़ के नीचे पलँग
पर विराजे। 25 सिक्ख गुरू जी के पहरे पर लगाये गए। कुछ सिक्खों ने रात में किले
पर धावा बोलने का फैसला किया, लेकिन गुरू जी ने सुबह करने के लिए कहा। सुबह होते
ही सिंघों ने किले को घेरा डाल लिया और कुदालों से तोड़ना चालु कर दिया। किले के
अन्दर बैठे हुऐ लोगों को मौत साफ दिख रही थी, उन्होंने किले की दीवारों पर चड़कर
गुरू जी के नाम की दुहाई दी, कि हमारी जान बख्श दो, हम माफी माँगते हैं। तब गुरू
जी ने सिक्खों को रोक दिया, सबने किले से बाहर आकर माफी माँगी और दुबारा ऐसा ना
करने की कसम खाई। कलमोट से गुरू जी वापिस जाने लगे तो, भाई दया सिंघ और अन्य
सिक्खों ने विनती की, कि आपने लोहगढ़ छोड़ते समय कहा था कि श्री आनंदपुर साहिब जी
हमारा घर है, फिर आ जाएँगे, तो उस वचन को पुरा करो और विभोर जाने की ब्जाय अपने
आनंदपुर में पधारिये। गुरू जी ने खालसा की ख्वाहिश देखी, तो श्री आनंदपुर साहिब
जी जाना स्वीकार कर लिया। गुरू जी के साथ पुरा दल-बल श्री आनंदपुर की और कूच कर
गया।
1869. गुरूद्वारा श्री पातालपुरी साहिब किस स्थान पर सुशोभित
है ?
1870. गुरूद्वारा श्री पातालपुरी साहिब का इतिहास क्या है ?
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इस स्थान पर छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी और
सातवें गुरू, श्री गुरू हरिराये साहिब जी के अन्तिम सँस्कार किए गए हैं। इसी
स्थान पर आठवें गुरू, श्री गुरू हरकिशन साहिब और बाबा राम राय की अस्थियाँ
जल-प्रवाहित की गई हैं।
1871. गुरूद्वारा श्री परिवार विछोड़ा साहिब किस स्थान पर
सुशोभित है ?
1872. गुरूद्वारा श्री परिवार विछोड़ा साहिब का इतिहास से क्या
संबंध है ?
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इस पवित्र स्थान पर दसवें गुरू, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी
परिवार और सिक्खों समेत, श्री आनंदपुर साहिब जी का किला छोड़कर पहुँचे थे। अमृत
वेले (ब्रहम समय) में आसा की वार का कीर्तन चल रहा था कि अचानक अचनचेत बाई पास
राजा और मुगल फौजों ने हमला बोल दिया। इस धर्मयुद्ध में भाई उदय सिंघ जी अनेक
सिक्खों के साथ शहीदी पा गये और इसी युद्ध में दसवें गुरू जी के परिवार का
विछोड़ा हो गया।
1873. गुरूद्वारा श्री सदाबरत साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित
है ?
1874. गुरूद्वारा श्री सदाबरत साहिब जी को कितने गुरू
साहिबानों की चरण धूल प्राप्त है ?
1875. गुरूद्वारा श्री सदाबरत साहिब का इतिहास क्या है ?
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छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी महाराज, डरोली
भाई रामदास की को दर्शन देकर सतलज के किनारे-किनारे रोपड़ आये थे और दुसरी बार
गुरू जी ने गुरूसर मेहराज की जँग जीतकर श्री कीरतपुर साहिब जी को जाते समय
बिक्रमी 1686 (सन् 1629) में सदाबरत में चरण डाले थे और पढ़ाव किया।
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सातवें गुरू हरिराये जी भी सदाबरत आए थे।
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श्री गुरू हरकिशन साहिब जी भी इस स्थान पर आए थे, जब गुरू
जी दिल्ली गए, तब पहला पढ़ाव रोपड़ सदाबरत में डाला था, तब संगतें हजारों की गिनती
में दर्शन करने आई थीं। आठवें गुरू हरिकिशन साहिब जी 1721 बिक्रमी (सन 1664)
माघ के महीने में इस स्थान पर आए थे।
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नवें गुरू तेग बहादर साहिब जी श्री आनंदपुर साहिब बसाकर
1721 बिक्रमी (सन 1664) में पूर्व की तरफ जाते समय पहला पड़ाव रोपड़ सदाबरत करके
गए थे, दुसरी बार जब गुरू जी असाम से वापिस आए थे, तब आए थे 1729 बिक्रमी (सन्
1672)।
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दसवें गुरू गोबिन्द सिंघ महाराज भी 1730 बिक्रमी (सन् 1673)
में 7 साल की अवस्था में जब, श्री पटना साहिब से श्री आनंदपुर साहिब जी आए थे,
तब सदाबरत रोपड़ में चरण डाले। इस स्थान पर दसवें गुरू गोबिन्द सिंघ जी कई बार
आए। कुरूक्षेत्र जाते समय, श्री चमकौर साहिब जाते समय यहाँ पधारे थे। गुरू जी
का सदाबरत सदा ही पढ़ाव रहा है। माता सुन्दरी और खालसे की माता साहिब कौर जी
दिल्ली जाते समय रोपड़ साहिब में एक रात रूके थे, लेकिन ये स्थान कौनसा है, इसकी
जानकारी नहीं हो पाई है।
1876. गुरूद्वारा श्री शहीदी बाग साहिब, जो कि श्री आनंदपुर
साहिब जी, जिला रोपड़ में है, किस गुरू से संबंधित है ?
1877. गुरूद्वारा श्री शहीदी बाग साहिब, जो कि श्री आनंदपुर
साहिब, जिला रोपड़ में है, का इतिहास क्या है ?
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यहाँ पर बोहड़ का एक बड़ा वृक्ष है, जो कि दसवें गुरू गोबिन्द
सिंघ जी के समय का है। जब ये सुख गया, तो संगतों ने विनती की, कि गुरू महाराज
ये बोहड़ हरा होना चाहिए। एक दिन दीवान सजा हुआ था, तो गुरू जी ने बोला की वो
माई इस्नान करे, जिसने मर्द का मुँह ना फिटकारा हो। तब एक माई ने स्नान किया तो
बोहड़ हरा हो गया। तो गुरू जी ने माई से पुछा कि आपने क्यों नहीं मर्द का मुँह
फिटकारा। उसने बताया कि हम सात बहनें थीं। हमारा पिता मर गया तब माता गर्भवती
थी। हमारी सारी जयदाद सरकार ने जब्त कर ली और हुक्म दे दिया कि अगर लड़का हुआ तो
तुम्हारी जयदाद फिर से लौटा दी जाएगी। जब हमारी माता को लड़का हुआ, तो हमारी
जयदाद वापिस मिल गई। तब से मैं मर्द का सत्कार करती रही हुँ कि मर्द एक नियामत
है, पर दुशमन के लिए कयामत है। इस बोहड़ के नीचे गुरू जी का प्रशादी हाथी भी
बँघता था।
1878. वो गुरूद्वारा साहिब जी कौन सा है, जिस स्थान पर श्री
गुरू तेग बहादर साहिब जी के पवित्र शीश (सिर) साहिब जी का अन्तिम सँस्कार किया गया
?
1879. गुरूद्वारा श्री शीश महल साहिब, कीरतपुर साहिब सिटी,
जिला रोपड़ का क्या इतिहास है ?
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इस पावन पवित्र स्थान पर सातवें गुरू हरिराय साहिब जी ने
1687 बिक्रमी माघ सुदी चौदस दिन रविवार 5 फरवरी 1630 ईस्वी को बाबा गुरदित्ता
जी के घर अवतार लिया। आपकी माता का नाम निहाल कौर था। बाबा गुरदित्ता जी, छठवें
गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के बड़े साहिबजादे थे। इसी पावन स्थान पर आठवें गुरू
हरिकिशन साहिब जी ने 1713 बिक्रमी वदी नौवीं दिन वीरवार 14 जुलाई 1656 को श्री
गुरू हरिराये साहिब जी के घर में अवतार लिया। आपकी माता किशन कौर थीं।
1880. गुरूद्वारा श्री सोहिला घोड़ा साहिब किस स्थान पर
सुशोभित है ?
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