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1801. गुरूद्वारा श्री खिचड़ी साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम बलबेरा, जिला पटियाला

1802. गुरूद्वारा श्री खिचड़ी साहिब का इतिहास क्या है ?

  • छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी दिल्ली जाते समय, संमत् बिक्रमी 1673 की जेठ (1616) को श्री अमृतसर साहिब से चलते हुये 100 घुड़सवार समेत 1673 बिक्रमी (सन् 1616) मुताबिक 5 हाड़ को करनाली साहिब पहुँचे। करनाली गाँव में सुरमख रोगी को ठीक करने के बाद गुरू साहिब वहाँ से चले गये। जब एक श्रद्धालू माता को पता चला, तो वो गुरू साहिब जी के पिछे दौड़ी और इस स्थान पर गुरू जी को प्रशादा (भोजन) छकाया। गुरू जी ने बोला, जो कोई इस स्थान पर खिचड़ी बनाकर छकेगा, उसके पीलीऐ के कष्ट रोगों का नाश होगा। नवें गुरू भी इस स्थान पर रूक कर दिल्ली रवाना हुये थे।

1803. गुरूद्वारा श्री मोती बाग साहिब, पटियाला सिटी, जिला पटियाला किस गुरू साहिबान से संबंधित है ?

  • गुरू तेग बहादर साहिब जी

1804. गुरूद्वारा श्री मोती बाग साहिब, पटियाला सिटी, जिला पटियाला का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • इस स्थान पर नवें गुरू तेग बहादर साहिब जी दिल्ली जाते समय आए थे। श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी अंनदपुर से चलकर कई सिक्खों समेत, रास्ते में कईयों को तारते हुए अपने मुरीद सैफ अली खाँ में बँधे हुए 16 हाड़ को जहाँ गुरूद्वारा साहिब बहादरगढ़ (सैफाबाद) है, में आकर विराजमान हुए। 3 महीन तक अली खाँ ने सेवा का लाभ प्राप्त किया। आप चौमासे के तीन महीने यहाँ पर रहकर नाम-दान का वर देकर 17 असू को आप विदा होकर काइमपुर, बिलासपुर के बीच, जहाँ पर गुरूद्वारा श्री मोती बाग है, आराम किया इसके बाद कई नगरों से होते हुए, आगरे में गिरफ्तारी दी। 13 मंघर सुदी पंचमी संमत् 1732 (सन 1675) गुरूवार को पहर दिन-चड़े आप जी ने धर्म हेत साका कर दिखाया। "धरम हेत साका जिन कीआ सीस दीआ पर पर सिरर ना दीआ"।

1805.  गुरूद्वारा पातशाही नवीं, किला बहादरगढ़ साहिब किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • यह गुरूद्वारा साहिब बहादरगढ़ किले के अन्दर सुशोभित है, पटियाला-राजपुर मैन रोड जिला पटियाला।

1806. गुरूद्वारा पातशाही नवीं, किला बहादरगढ़ साहिब का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • इस स्थान पर गुरू तेग बहादर साहिब जी अर्न्तध्यान होकर सिमरन करते थे। गुरू जी सैफाबाद में संत सैफ अली खान के पास रूके थे। गुरू जी दिन के समय सिमरन करते थे।

1807. गुरूद्वारा श्री पातशाही छेवीं और पातशाही नौवीं जिला पटियाला में किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • ग्राम करहाली, दकाला के पास, जिला पटियाला

1808. गुरूद्वारा श्री पातशाही छेवीं और पातशाही नौवीं जिला पटियाला का क्या इतिहास है ?

  • छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी दिल्ली जाते समय संमत् बिक्रमी 1673 (सन् 1616) ई0 मुताबिक 5 जेठ को 100 घुड़सवारों समेत करहाली में ऊपर की तरफ एक झिड़ी में आ विराजमान हुये, जहाँ पर एक मनमुख नाम का कुष्ट रोग का एक भयानक रोगी रहता था। जिसके शरीर पर मक्खियाँ उड़ती रहती थीं। उसे गाँव से बाहर निकाला हुआ था। कभी-कभी ही कोई रब का प्यारा उसके पास जाता था। उसका छूत का रोग किसी और को न लग जाए, इसलिए वो झुग्गी में अकेला ही पड़ा रहता था और हर समय परमात्मा का नाम जपता रहता था और कभी कुरलाता रहता था– हे कलियुग के अवतार या तो मेरी मुक्ति कर दो, या फिर मेरे भयानक रोग को खत्म कर दो। घट-घट के जाननहार, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी पहुँचे और आवाज दी– भाई तेरी विनती गुरू घर में प्रवान हुई है। परमात्मा ने तेरी मुक्ति कर दी है, उठकर इस छपड़ी में स्नान करने से तेरी देह सुन्दर और अरोग हो जायेगी। गुरू जी ने कहा कि इस समय पातालपुरी से अठसठ तीरथों का जल इस स्थान पर प्रवेश कर रहा है। जब उसने बचन सुने तो कपड़े समेत छपड़ी में आ गिरा। उसे ऐसा लगा जैसे शरीरक रोग कभी था ही नहीं। वो दौड़कर गुरू जी के चरणों में आ गिरा। इस चमत्कार का पता गाँव वालों का लगा तो सारे के सारे चरणों में आ गिरे। गुरू जी ने आर्शीवाद दिया– जो कोई "पाँच रविवार" या पाँच पँचसियाँ स्नान करेगा उसका 18 प्रकार का कोड़ सेकड़ां, परमात्मा आप ठीक करेगा और कुछ समय बाद इस स्थान पर तीरथ बनेगा। नोवें गुरू तेग बहादर साहिब जी ने भी दिल्ली जाते समय अपने मुबारक चरण इस स्थान पर डाले।

1809. गुरूद्वारा "श्री तेग बहादर साहिब जी", बहादरगढ़ किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • पटियाला-राजपुरा मैन रोड, जिला पटियाला

1810. गुरूद्वारा श्री तेग बहादर साहिब जी, बहादरगढ़ का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • नवें गुरू तेग बहादर साहिब जी साके के लिए दिल्ली जाते समय कई नगरों की संगत को तारते हुये अपने मुरीद सैफदीन और संगतों के प्रेमवश 16 हाड़ 1732 (सन् 1675) को इस स्थान पर बाग में आकर विराजमान हुए। सैफदीन तो पहले से ही गुरू जी का श्रद्धालू था। इस स्थान की संगतों का प्रेम देखकर चौमासे के 3 महीने रहकर इस धरती को भाग लगाए। सैफदीन की विनती पर किले के अन्दर जाते रहे, जहाँ पर आपकी याद में सुन्दर गुरू स्थान बना हुआ है। गुरू जी ने असू 1732 बिक्रमी (सन् 1675) को इस स्थान से प्रस्थान किया।

1811. गुरूद्वारा श्री थड़ा साहिब जी, जो कि समाना सिटी, जिला पटियाला में है किस गुरू साहिबान से संबंधित है ?

  • श्री गुरू तेब बहादर साहिब जी

1812. गुरूद्वारा श्री थड़ा साहिब जी, जो कि समाना सिटी, जिला पटियाला में है, का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • नवें गुरू तेग बहादर साहिब जी महाराज ने दिल्ली जाते समय इस स्थान पर 1675 को अपने चरण डाले। गुरू जी, जहाँ पर साँईं अनायत अली का स्थान था, वहाँ पर आए थे। इस स्थान पर पापी मुसलमान रहते थे, जो गायों को मारकर कुँए में डाल देते थे। एक सिक्ख, संगत के लिए कुँए से पानी लेने गया तो, उसने सारी बात आकर गुरू जी को बताई। गुरू जी ने एक कुँए की खुदाई करवाई। पास ही एक गढ़ी थी, जहाँ पर भीखनशाह, जो गुरू जी का श्रद्धावान था, रहता था। उसने गुरू जी को बहुत कुछ भेंट किया। एक दिन गुरू साहिब जी को ढूँढते हुए कुछ मुसलिम सैनिक आए, भीखनशाह को इस बात का पता लगा, तो उसने गुरू जी से विनती की, कि इस स्थान पर सारे के सारे मुसलमान हैं, यहाँ पर आपका रहना ठीक नहीं, अगर आप मेरे घर से गिरफ्तार किये गए, तो यह मेरे परिवार के लिए बड़े ही शर्म की बात होगी। विनती परवान करते हुए, गुरू जी भीखनशाह की गढ़ी से चले गए, जिस स्थान पर गुरूद्वारा श्री गढ़ी साहिब सुशोभित है।

1813. गुरूद्वारा बाबा गुरदित्ता जी साहिब, किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • कीरतपुर सिटी, जिला रोपड़

1814. गुरूद्वारा बाबा गुरदित्ता जी साहिब का इतिहास से क्या संबंध है ?

  • गुरूद्वारा बाबा गुरदित्ता जी कीरतपुर शहर से एक किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी के ऊपर सुशोभित है। ये गुरूद्वारा छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के बेटे बाबा गुरदित्ता और बाबा श्रीचँद जी की याद में बनाया गया है।

1815. श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी ने श्री चौपाई साहिब जी की बाणी का उचारण किस पवित्र स्थान पर किया था ?

  • गुरूद्वारा श्री बिभोर साहिब जी

1816. गुरूद्वारा श्री बिभोर साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • नांगल सिटी, जिला रोपड़

1817. गुरूद्वारा श्री बिभोर साहिब जी का इतिहास क्या है ?

  • यह गुरूद्वारा साहिब दसवें गुरू गोबिन्द सिंघ की की पवित्र याद में बना हुआ है। यहाँ के राजा रतनराए की विनती को परवान करते हुए, श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी इस स्थान पर कई महीने विराजमान रहे। संमत् 1753 भादवो सुदी (सन् 1696) रविवार वाले दिन कलगीधर पातशाह जी ने सतलज नदी के किनारे इस पवित्र स्थान पर श्री चौपई साहिब जी की बाणी का उचारण किया था। "संमत् सत्रह सहस भणिजै। अरध सहस फुन तीनि कहीजै।। भाद्रव सुदी असटमी रविवारा। तीर सतुद्रवग्रन्थ सुधारा"।।

1818. गुरूद्वारा भाई जैता जी, किस स्थान पर सुशोभित है ?

  • आनंदपुर साहिब सिटी, जिला रोपड़

1819. भाई जैता जी का जन्म कब हुआ था ?

  • सन् 1661 ईस्वी में, श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के आर्शीवाद से श्री पटना साहिब जी में हुआ था।

1820. भाई जैता जी के माता पिता जी का क्या नाम था ?

  • पिता सदानँद जी और माता प्रेमो जी

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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