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1681. गुरूद्वारा श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी, भरता
गनेशपुर किसके नाम से भी प्रसिद्ध है ?
1682. गुरूद्वारा श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी, भरता
गनेशपुर का इतिहस से क्या संबंध है ?
1683. गुरूद्वारा श्री पुलपुखता (टाहली साहिब) जी किस स्थान
पर सुशोभित है ?
1684. गुरूद्वारा श्री पुलपुखता (टाहली साहिब) जी किस गुरू
से संबंधित है और इसका इतिहास क्या है ?
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इस पवित्र स्थान पर, छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब
जी आए थे। ये पवित्र स्थान, पवित्र नदी (काली बेंई) के किनारे स्थित है। गुरू
साहिब जी ने कलयुगी जीवों का उद्धार करते हुए और कुदरत के नजारो का आनँद लेते
हुए, कुछ समय यहाँ पर विश्राम किया। जिस टाहली के पेड़ से घोड़ा बाँधा था, वो
किल्ला (पेड़ का बचा हुआ हिस्सा) बेंई किनारे, सरोवर में सुशोभित है। जो भी
व्यक्ति श्रद्धा से स्नान करता है, उसकी मनोकामना पुरी होती हैं। बाँझों की गोद
भरती है, सुखे हरे होते हैं।
1685. गुरूद्वारा श्री गरना साहिब जी किस स्थान पर सुशोभित
है ?
1686. गुरूद्वारा श्री गरना साहिब जी किस गुरू से और किस
प्रकार संबंधित है ?
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संमत् 1677 (सन् 1620) में मीरी पीरी के मालिक छठवें गुरू
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी इस गाँव बोदल पहुँचे। यहाँ गारने के पेड़ों का
जँगल था। गुरू जी जँगल में से निकल में से निकल रहे थे, तो गारने का एक सुखा
छापा गुरू जी के चोले में फँस गया। गुरू जी ने उसे मोहरां के घर आकर उसको जमीन
में गढ़वाकर वर दिया कि तुने हमें अटकाया है, इसलिए तुँ अपनी छाँव से सँसारी जीवों
की अटकाहट दूर करेगा और वो मनबाँछत फल प्राप्त करेंगे। गुरू जी आगे सुकेरिये की
तरफ चले गये। फिर गुरू साहिब संमत् 1684 (सन् 1628) को दुबारा आये, तो वो गरना
का सुखा छापा अच्छा पेड़ बन चुका था, तो गुरू जी इस पेड़ के नीचे विराजमान हुए।
गाँव बोदल के चूहड़ रबाबी ने गुरू साहिब जी के पास जाकर कीरतन सुनाया। गुरू जी
ने उसे खुश होकर रबाब दी। बोदल मुसलमानों का गाँव था। कुछ समय बाद इस जमीन के
मालिक ने जँगल कटवाने शुरू कर दिये और गुरू वर प्राप्त गरना का पेड़ भी कटवा दिया।
दुसरे दिन वो गरना वैसा का वैसा था। मुसलमान ने उसे फिर कटवा दिया, लेकिन अगले
दिन वो फिर हरा-भरा हो गया। मुसलमान ने उसे तीसरी बार फिर कटवा दिया, तो रात को
उसे आकाशवाणी हई कि ये गरने का बूटा जुगो-जुग अटल रहेगा, तुँ इसे कटवाकर खत्म
नहीं कर सकता। इतिहास इस बात का गवाह है कि वो मुसलमान गाँव छोड़कर चला गया। वो
गरने का बूटा आज भी संगत के सामने है।
1687. गुरूद्वारा श्री चौखन्दगढ़ या चुखन्दी साहिब जी किस
स्थान पर सुशोभित है ?
1688. गुरूद्वारा श्री चौखन्दगढ़ या चुखन्दी साहिब जी किससे
संबंधित है ?
1689. गुरूद्वारा श्री चौखन्दगढ़ या चुखन्दी साहिब का,
साहिबजादा अजीत सिंघ जी से क्या संबंध है ?
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इस स्थान पर दसवें गुरू गोबिन्द सिंघ जी के साहिबजादे अजीत
सिंघ जी आए थे, जब वो 200 सिंघों के साथ श्री आनंदपुर साहिब जी से महिलपुर,
शहीदां लदेवाल, चुखँदी साहिब बजरोड़ जा रहे थे, बाबा अजीत सिंघ जी जहाँ पर निशान
साहिब है, वहाँ ठहरे थे। वो उस स्थान पर पारस ब्राहम्ण की याचना पर जा रहे थे,
जिसकी पत्नि को जाबर खान पठान ने जबरन पकड़ लिया था। यह वही स्थान है, जहाँ पर
अजीत सिंघ जी सबसे पहले रूके थे। इसके बाद वो बजरोड़ चले गए, जहाँ पर गुरूद्वारा
श्री हरियां वेला जी सुशोभित है।
1690. गुरूद्वारा श्री साहिबजादा अजीत सिंघ साहिब जी किस
स्थान पर सुशोभित है ?
1691. गुरूद्वारा श्री साहिबजादा अजीत सिंघ साहिब जी का
हतिहासिक संबंध क्या है ?
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यह गुरूद्वारा साहिब साहिबजादा अजीत सिंघ जी की याद में बना
हुआ है। बसिआं का मालिक हाकम जाबर खान इस इलाके के हिन्दूओं पर हर प्रकार का
जूल्म और जबरन लडकियों, औरतों की बेइज्जती करता था। एक प्रसँग में होशियारपुर
जिले के जोजे शहर के गरीब ब्राहम्ण की र्धमपत्नि की डोली हाकम जाबर खान हथियाकर
अपने महल ले आया। दुखी ब्राहम्ण धार्मिक आगूओं, राजाओं के पास जाकर रोया, लेकिन
उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। फिर देवीदास श्री गुरू गोबिन्द सिंघ जी के पास श्री
आनंदपुर सहिब जी जा पहुँचा और घटना कही। गुरू जी ने अजीत सिंघ के साथ 200
बहादुर सिक्खों का जत्था हाकम जाबर खान को सबक सिखाने के लिए भेजा। अजीत सिंघ
ने अपने जत्थे समेत जाबर खान पर हमला किया, धमासान की जँग में धायल जाबर खान को
बाँध लिया गया, साथ ही देवीदास की पत्नि को देवीदास के साथ उसके घर भेज दिया।
1692. गुरूद्वारा श्री टाहली साहिब जी छेवीं पातशाही किस
स्थान पर है ?
1693. गुरूद्वारा श्री टाहली साहिब छेवीं पातशाही का क्या
इतिहास है ?
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पुरातन इतिहास अनुसार संमत् 1687 बिक्रमी (सन् 1630) को
गाँव रूहेले के भगवानदास को सोधकर, जालँघर के सूबे अबदल खान से जँग (15 जून
1628 ई) फतेह करके छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी इस पवित्र स्थान पर पधारे। उस
समय आप जी के साथ भाई बिघिचंद जी, भाई धिंगड़ जी, भाई अनंता जी थे। गुरू जी ने
टाहली से अपना घोड़ा बाँधा था। घोड़े के धोड़ से जल का करिश्मा निकला, जो बाउली
सहिब के रूप में आज भी मौजूद है। गुरू जी ने खुश होकर वर दिया कि, जो भी श्रद्धा
के साथ इस बाउली साहिब में स्नान करेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी।
1694. गुरूद्वारा श्री चरनकँवल साहिब जी, पातशाही छेवीं किस
स्थान पर सुशोभित है ?
1695. गुरूद्वारा श्री "चरनकँवल साहिब जी", पातशाही छेवीं का
इतिहास से क्या संबंध है ?
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इस पवित्र स्थान पर छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने शेख
दरवेश की विनती परवान करते हुए, अपने चरण डाले थे और श्री डेरा साहिब जी के
स्थान पर रूहानियत की बातें की। इसी स्थान पर रामगड़िया कुँदी-परिवार की विनती
परवान करते हुए, उनके घर में चरण डाले और प्रीतीभोज करके निहाल किया। यहाँ पर
हर अमावस्या पर भारी जोड़ मेला और हर साल 29 हाड़ को उस दिन भारी समागम होते हैं।
1696. गुरूद्वारा श्री चौबाचा साहिब जी पातशाही छेवीं किस
स्थान पर सुशाभित है ?
1697. गुरूद्वारा श्री चौबाचा साहिब जी पातशाही छेवीं का
इतिहस से क्या संबंध है ?
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यह पावन स्थान छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की
याद में सुशोभित है। इस स्थान पर गुरू जी निवास करते थे। इसी स्थान पर गुरू
साहिब जी जरनैल पैंदे खान के साथ चौपट खेला करते थे। यहाँ पर एक बहुत बड़ा कुँआ
था, जिसके नजदीक सुन्दर बाग था, जिसमें कुँए का पानी डाला जाता था। कुँए के पास
सुन्दर चौबाचा (चबूतरे जैसा) बना हुआ था। कुँए के पानी से फुहारे चलते थे।
चौबाचे के फुहारो की सुन्दर दिखावट के कारण इस स्थान का नाम श्री चौबाचा साहिब
पड़ा।
1698. गुरूद्वारा श्री गँगसर साहिब जी, सिटी करतारपर, जिला
जालँधर किन–किन गुरू साहिबानों से संबंधित है ?
1699. गुरूद्वारा श्री गँगसर साहिब जी, सिटी करतारपर, जिला
जालँधर, पाँचवें गुरू, श्री गुरू अरजन देव जी से क्या संबंध रखता है ?
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करतारपुर नगर बसाकर नगर निवासियों की पानी की जरूरत को
घ्यान में रखते हुए, संमत् 1656 (सन् 1599) में श्री गुरू अरजन देव जी ने यहाँ
पर कुँआ लगवाया था। यहाँ पर गुरू जी ने अपने सेवक भाई विसाखीराम, जिसका गढवा (लोटा)
गगाँ नदी में गिर गया था, इस कुँए में प्रकट कराकर तीरथ गँगा के स्नान का भ्रम
दूर किया था। इसलिए इस कुँए का नाम गँगसर है। गुरू जी ने इस कुँए को अनेकों वर
देते हुए फरमाया कि, जो भी प्राणी इस कुँए के जल से स्नान करेगा, उसके सारे
मानसिक, शरीरक रोग दूर हो जायेंगे। गुरू साहिब जी जिस स्थान पर दीवान सजाते थे,
उसका नाम श्री मंजी साहिब है।
1700. गुरूद्वारा श्री गँगसर साहिब जी , सिटी करतारपर, जिला
जालँधर, छठवें गुरू, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी से क्या संबंध रखता है ?
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छठवें गुरू हरगोबिन्द साहिब जी भी इस स्थान पर विराजकर संगतों
को धर्म उपदेश दिया करते थे। इस स्थान पर ही गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने मुगल
हुकुमत के, जुल्म के खिलाफ चौथी जँग लड़ी और जीत हासिल की, इसी स्थान पर श्री
गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने अपने खास जरनैल पैंदे खान को मारा था। इसी स्थान पर
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने कमरकसा खोलकर दम लिया था।
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